Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 333
________________ ( ३१२) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकारः शुण्ठीनिम्बदलैः पिण्डी सुखोष्णा स्वल्पसैन्धवाः । धार्या चक्षुषि संयोगाच्छोथकंडूव्यथापहा ॥४॥ पिंडिकाको कवली भी कहते हैं इस पिंडिकाको कपडे के पट्टीसे बाँधते हैं, नत्राभिष्यंदके योग्य है. और व्रणपरभी बांधी जाती है। एरंडकी जड, तज, पत्रज इनकी बनी पिंडी वातको दूर करे । आंकलेकी पिंडा पित्तगेगोंको दूर करे । नींबके पत्तोंकी पिंडी वातपित्तके रोगोका नाश करे । त्रिफलाकी पिंडी कफ पित्तके रोगोंका नाश करे । मोंठ, नींबके पत्ते थोडा सैंधानिमक इनकी पिंडी सूजन और खुजलीयुक्त व्यथाको दूर करे ॥ १-४ ॥ ___ अथ गण्डूषः। दातृष्णाप्रशमनं मधुगंडूषधारणम् । पिबेत्ताराग्निदग्धे च सर्धािर्य पयोऽथवा ॥१॥ तैलसैन्धवगंडूषा दन्तचाले प्रशस्यते । . शोफ मुखस्य वैरस्य गण्डूषः कांजिकं जयेत्॥२॥ शहद के कुरले दाह और प्यासको दूर करते हैं, विषसे अथवा क्षारोंसे अथवा अग्निस मुख जलगया हो तो दूध अथवा घृतको मुखमें रकरवे । तेल और सैंधानिमकके कुग्ले हिलते दांतोंवालोंको हित हैं सूजन तथा मुखकी विरसताको कांजीके कुरले दूर करें ॥ १-२॥ । तथा सहचरक्वाथ गण्डूषो मुखपाक हृत् । । जातीपत्रामृता द्राक्षा पाठा दावीफलत्रिकम् ।। । पद्मकं समधुकाथगंडूषो मुखपाकहृत् ॥३॥ पियावांसा अथवा ऊंटकटेरीके काढेके कुरले करनेसे मुखके छाले मिटें, जायफल, गिलोय,. दाख, पाढ, दारुहरुदी Aho! Shrutgyanam

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