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सप्तमः ]
भाषाटीकासहितः ।
अमृताया रसः क्षौद्रयुक्तः सर्वप्रमेह जित् । वासकस्वरसः पेयो मधुना रक्तपित्तजित् ॥ ४ ॥
(३१७)
आधा पल अजमोद लेकर प्रातःकाल किसी मिट्टी के पात्र में भिगो हे और दूसरे दिन निकालकर पीसे और जलमें छानकर पीवे तो वातसहित अंतर्दाह दूर होवे । तुलसी के पत्तों के रसमें काली मिरच मिलाकर पीवे अथवा द्रोणपुष्पी ( गोमा ) का रस पीनेसे विषमज्वर नाश होवे । त्रिफला के रसमें शहद मिलाकर पीवे वा दारूहल्दीका रस शहद मिलाकर पीवे या नीमके पत्ते आठ प्रहर भिगोकर पीवे अथवा गिलोय का रस पीवे तो कामला नष्ट होवे । अठहरी गिलोय शहदके साथ पीने से सर्व प्रमेह नाश होवें । और अठपहरी अडूसेका रस शहद के साथ पीने से रक्तपित्त नष्ट होवे ॥ १-४ ॥
मधूर कज्वरलक्षणम् ।
ज्वरो दाहो भ्रमो मोहो ह्यतिसारो व मिस्तृषा । अनिद्रा च मुखं रक्तं तालुर्जिह्वा च शुष्यति ॥ १ ॥ ग्रीवामध्ये च दृश्यन्ते स्फोटकाः सर्षपोपमाः । एतचिह्नं भवेद्यस्य स मधूरक उच्यते ॥ २ ॥
ज्वर, दाह, भ्रम, मोह, अतिसार, वमन, प्यास, निद्रानाश, मुख काल होना, तालुवा और जीभका सूखना, नाडमें सरसोंके समान फूंसी होना ये चिह्न जिसमें होवें उसको मधूरकज्वर कहते हैं ॥ १-२ ॥
मधूरकस्वरसम् ।
सहस्रवेधपाषाणं कपालं कच्छपस्य च । वृद्धेला तुलसीपत्रं नारिकेलास्थि नूतनम् ॥ १ ॥
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