Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 342
________________ सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (३२१) शुंठीयोगः। गुडाईकं वा गुडनागरं वा गुडाभया वा गुडपिप्पली वा। कर्षाभिवृद्धयात्रिफलाप्रमाणं खादेन्नरः पक्षमथापि मासम् ॥ १॥ शोफप्रतिश्यायगरादिरोगान् सश्वासकासारुचिपीनसादीन् । जीर्णज्वरा ग्रहणीविकारान्हन्यात्तथाऽन्यान्कफवातरोगान् ॥२॥ मुड और अदरक, या गुड और सोंठ, अथवा गुड और हरड, वा मुड और पीपल एक कर्षकी वृद्धिसे त्रिफलाके प्रमाण एक पक्ष वा एक महीना खाय तो सूजन,विषरोग, श्वास, खांसी, अरुचि, पीनस, पुराना ज्वर, बवासीर, संग्रहणी और वात कफके संपूर्ण रोग नष्ट होवें ॥ १-२॥ त्रिफलायोगः । एका हरीतकी योज्या द्वौ च योज्यौ विभीतको । चत्वार्यामलकान्येव त्रिफलैषा प्रकीर्तिता ॥१॥ त्रिफला मोहशोषनी नाशयेद्विषमज्वरान् । दीपनी श्लेष्मपित्तनी कुष्ठहंची रसायनी। सर्पिर्मधुभ्यां संयुक्ता नेत्ररोगं व्यपोहति ॥२॥ हरड एक भाग, बहेडा २ भाग, आंवला ४ भाग इसको त्रिफला कहते हैं. त्रिफला-शोष, मोह. विषमज्वर, कफके विकार, पित्तके विकार कोढ इनको नाश करै और रसायन है, सहद और घृतके साथ त्रिफला खानेसे नेत्ररोगोंका नाश करे ॥ १-२॥ Aho! Shrutgyanam

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