Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 344
________________ सप्तमः] भाषाटीकासहितः। चोबचीनी। चोबचीनी समुत्काल्य विशाणं पिवतः सदा। सर्ववातप्यथा यान्ति पथ्य नितिसेविनः॥१॥ चोबचीनीको औटाकर तीन शाण पीवे तो सब वातव्याधि नष्ट होवें. इसके खानेवाला पथ्यसे और पवनरहित स्थानमें रहे ॥ १॥ सिद्धहरिद्रा ( जमाईहलदी)। भागद्वयं हरिद्राया विश्वायाश्चैकभागकः। गुन्दोऽद्धाशो घृते भृष्टः खण्डं भागं चतुर्मतम् ॥ १॥ घृतेनालोड्य तत्सर्व धान्यराशि विमध्यगम् । चतुर्दशदिनं स्थाप्यं गुप्तं यत्नेन भक्षयेत् ॥२॥ अम्लक्षारादिकं वज्यै माघमासे त्विदं हितम् । रधिरार्तिवातभनेषु शुभं चक्षुःप्रसादनम् ॥ ३ ॥ हलदी दो भाग, सोंठ एक भाग, धीमें भुना गोंद आधा भाग, मिश्री चार भाग इन सबको घृतमें मिलाकर धानकी राशिमें गाड देवे, फिर चौदह दिनके उपरान्त निकालकर खावे और खट्टा, चरपरा, नमकीन न खावे. इसको माघके महीनेमें खाय तौ रुधिरके विकार, चादीके रोग और संपूर्ण नेत्रविकारोंको नाश करे ॥ १-३॥ सिद्धारकः ( जमायाजीरा)। जीरकं भागमेकं स्यात्खण्डस्तद्विगुणः स्मृतः। चतुर्गुणं घृतं तप्तं सर्व संमेल्य चोद्धरेत् ॥ १॥ गोधूमपुंजमध्ये च चतुर्दशदिनस्थितम् ।। माघमासकृतं चैतदक्षितं चक्षुषोहितम् ॥ २॥ Aho! Shrutgyanam

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