Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas
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(३१६) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकर:दिनानि सप्तदश वा स्थितं निष्कासयेत्ततः। पलाई तु पिबेनित्यं श्वासपाण्डुक्षयान् जयेत् ॥३॥ लोहकी कील १६ पल, नोन दो पल त्रिकुटा प्रत्येक ८-८ टंक, भांग ८ टंक. तज ८ टंक, लौंग ८ टंक, तमालपत्र ८ टंक, छाछ ४८ टंक इनको एकत्र मिलाय १०० पल गरम जलमें मिलाकर किसी मिट्टीके बरतनमें भर पृथ्वीमें गाड देवे फिर सात वा दस दिन पीछे पृथ्वमिसे निकालकर ८ टंक नित्य पीवे तो श्वास, खांसी, पांडुरोग और क्षय इनको दूर करे ॥ १-३ ॥
अमृताहिमः (अठपहरी गिलोय )। अमृताया हिमः पेयो वासायाश्च हिमस्तथा। प्रातः सशकरः पेयो हितो धान्याकसंभवः ॥ १ ॥ अन्तहिं तथा तृष्णां जयेत्स्रोतोधिशोधनः । धान्याकधात्रीवासानां द्राक्षापप्पटयोहिमः ॥२॥ गिलोय वा अडूसा तथा धनियांको गतमें भिगोद और प्रातःकाल 'पीस कपडेमें छान मिश्री मिलाकर पीवे तो देहके भीतरका दाह, ‘प्यास और मूत्रकृच्छूको दूर करे। धनियां, आंवला, अडूसा, दाख, पित्तपापडा इनका हिम रक्तपित्त, ज्वर, दाह, प्यास और शोषको 'दूर करे ॥ १ ॥९॥
पलार्द्धमजगन्धाया अष्टयामोषितं जले । वर्तयित्वा पिबेत्प्रातर्हन्ति दाहं सवातकम् ॥१॥ पीतो मरिचचूर्णेन तुलसीपत्रजो रसः। द्रोणपुष्पीरसो वापि निहन्ति विषमज्वरान् ॥२॥ त्रिफलाया रसः क्षौद्रयुक्तो दार्वीरसोऽथवा । निबस्य वा गुडूच्या वा पीतो जयति कामलाम्॥३॥
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