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योगचिन्तामणिः ।
[ मिश्राधिकार:
करते हैं उस जगहकी मिट्टी बांधे अथवा चिकने और गरम आकके पत्ते अथवा महुआ के पत्ते तथा वडके पत्ते बांधे । इस प्रकार स्वेदन करके बांधने से पेटका अफरा दूर होवे ॥ १-२ ॥
बाष्पविधिः ।
अपामार्ग च निर्गुडी मुण्डी पाता च नागरम् । ग्रन्थिकं निम्बपत्राणि जलेनोत्कालयेदृढम् ॥ १ ॥ तद्भाण्डं निश्चलं धृत्वा वस्त्रेणाच्छादयेद्वपुः । गृह्णाति नम्रस्तद्वाष्पं शिरःपीडां निवारयेत् ॥ २॥ आंगा, सँभालू, गोरखमुंडी, पत्रज, सोंठ, पीपलामूल, नींबके पत्र इन सबको जल में उबाले, पीछे उस पात्रको निश्चल स्थापन कर और अपने शरीरको कपडेसे ढककर उस पात्रकी भाफसे मस्तकको सेंके तो सिरपीडा दूर होवे ॥ १-२ ॥
उद्दूलनम् ( उबटना ) |
पिप्पली कट्फलं शृंगी बचा कुष्ठं यवानिका | पुष्करं नागरं तिक्ता ग्रन्थिकं सुरदारु च ॥ १ ॥ मुद्रपिष्टं माषपिष्टं पुराणा वसुधेष्टका । तुम्ब्या वर्ण वत्सनागं शिरीषम्यापि भस्म च ॥ २ ॥ त्रिचतुर्वा दृढे वस्त्रे गालनीयं पुनः पुनः । तच्चूर्णमर्दनाद्गात्रे शीतांगत्वं निवर्त्तयेत् ॥ ३ ॥
पीपल, कायफल, काकडासिंगी, बच, कूठ, अजमायन, पोहकरमूल, सोंठ, कुटकी, पीपलामूल, देवदारु, मूंगका चून, उडदका चून, पुरानी गचका चून, पुरानी ईंटका कुक्कुआ, तुम्बीका चूर्ण, वच्छनागविष, सिरसकी राख इन सबको कूट पीस तीन चार बार गाढ़े
Aho ! Shrutgyanam
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