________________
( १०८ )
योगचिन्तामणिः ।
[ गुटिकाधिकारः
२ - अकरकरा, सैंधानोन, चीता, सोंठ, आंवला, मिरच, लोंग और हर इनको बिजौरे के रसकी भावना देकर गोली बनावे | मन्दानिवाले को यह अमृत समान है, इससे खांसी, गलरोग, श्वास, पीनस आदि रोग दूर होवें. अपस्मार, उन्माद, सन्निपातवालों को भी हितकारी है ॥ ५ ॥ ६॥
वटप्ररोहादिगुटिका |
वटप्ररोहूं मधु कुष्ठमुत्पलं सलाजचूर्णैर्गुटिकां प्रकल्पयेत् । सशर्करा सा वदने च धारिता तृषां प्रवृद्धामपि हन्ति सत्वरम् ॥ १ ॥
वडकी जटा, शहद, कूठ, कमलगट्टा, धानकी खील इनकी गोली बनाकर मिश्री के साथ मुँह में राखे तो प्यास बंद होवे ॥ १ ॥ राजगुटिका १-२ |
शुण्ठ्याः पलं पलार्द्ध च गन्धकं सैन्धवं तथा । निम्बूकरससंबद्धाहन्त्यजीर्णे विषूचिकाम् ॥ १ ॥
१ - सोंठ एक पल, गन्धक, संधानोन आधा पल, इनको नीम्बुके रसमें मिलाय छोटे बेर के समान गोली बना लेवे तो अजीर्ण और विषूचिका को दूर करे ॥ १ ॥
43
नागरं च चतुर्भागं तदर्द्ध सैन्धवं तथा । गन्धकं भागमेकं च कापथ्या गन्धकं समम् ॥ २॥ निम्बूरसस्य सप्ताहं पुढं दद्याद्विशारदः । विषूचिकाजीर्णशूलं मन्दाग्निं वमनं हरेत् ॥ ३ ॥ एषा राजवटी नाम कोलमात्रं तु भयक्षेत ॥ ४ ॥ २ - साठ ४ टंक, सैंधानोन २ टंक, हरड १ टंक, गन्धक १ टंक इनकी नीम्बूके रसमें छोटे बेरके
समान गोली बनावे
Aho ! Shrutgyanam