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(२३८). योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकारःगुडस्य च पुटं दत्त्वा पुनः पंचामृतैः पचेत् । ततो वटजटाक्वाथैः सम्यग् देयं पुटत्रयम् ॥४॥ एवं निश्चन्द्रतां याति सर्वरोगेषु योजयेत् । मृतमभ्रं हरेन्मृत्युं जरापलितनाशनम् ॥ ५॥ योजितं चानुपानेन सर्वरोगहरं स्मृतम् ॥ ६॥ काला भोडल दो प्रस्थ चूर्ण कर आकके पत्ते लपेटकर ठीकरीमें आंच देवे, ऐसेही आकके दूधकी सात पुट देवे और पकावे, फिर तीन पुट कुमारीके रसकी देवे, फिर तीन पुट त्रिफलेके रसकी देय, फिर गुडकी एक पुट देय, फिर पञ्चामृतकी एक पुट देय, फिर बडकी जटाके काढेकी तीन पुट देय, इस प्रकार उज्वल करे, फिर सब रोगोंमें बर्ते । यह मरा हुआ अभ्रक मृतकको जिलावे, बुढापेको दूर करे अनुपानसे देय तो सहसा रोग न होवे, सब रोग नाश होवें ॥ १-६ ॥
सर्वधातुसत्त्वविधिः १-२ । लाक्षा मीनं पयश्छागं टंकणं मृगशृङ्गकम् । पिण्याकं सर्षपाशिग्रुगुजोर्णा गुडसैन्धवम् ॥ १ ॥ यवस्तिक्ता घृतं क्षौद्रं यथालाभं विचूर्णयेत् । एभिर्विमिश्रिताः सर्वे धातवो गाढवह्निना ॥२॥ मूषाध्माताः प्रजायन्ते मुक्तसत्त्वान संशयः॥३॥ १-लाख, मछली, बकरीका दूध, सुहागा, हिरनका सींग, सरसोंकी खल, सहजना, चिरमिटी, उन, गुड, सेंधानोन, यव, कुटकी, घृत, शहद जिस प्रकार हो सके उस प्रकार चूर्ण करे और सब धातुमात्रका सत्व निकाले इन चीजोंका मूषा संपुटकर सत्व निकाले ॥१.३॥
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