Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas
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सप्तमः ]
भाषाटीका सहितः ।
( ३०१ )
न हँसे । फिर उठकर छींक लेवे और नाक मुँह सें पानी गिरे तो बांई तथा दाहिनी तरफ थूके सम्मुख न थूके । यह नास्यविधि कही है ॥ १-४ ॥
नस्यं स्याद्गुडशुंठीभ्यां विकारे वातके हितम् । शर्करा घृतयष्टीभिः पित्तके नस्यमेव च ॥ १ ॥ श्लेष्मके सुरसावासारसं सुविहितं च तत् । विडङ्ग हिंगुमगधा कृमिदोषे हितं मतम् ॥ २ ॥ रक्तजेऽसृग्विरेकं तु शिरोरोगमुपक्रमः । शर्करा कुंकुमं नस्यं घृतभृष्टं शिरोर्तिनुत् ॥ ३ ॥ समुद्रफलनस्येन छिक्किन्या सम्भवेन वा । षड्बिन्दुतैलनस्येन यान्ति रोगाः कपालजाः ॥ ४ ॥
वातविकारवालेको मुड और सोंठकी नास देवें । पित्तविकार में मिश्री घी और मुलहठीकी नास देवे । इलेष्म ( कफ ) के विकार में तुलसी, और अडूसेके रसकी नास देवे. जो मस्तक में कीडे पड जायँ तो वायविडंग, हींग, पीपलकी नास देवे तो हित करे । रुधिर से मस्तक भारी होजाय तो खांड और केशरको घीमें भूनकर बूराकी नास देवे । समुद्रफल की अथवा नकछिकनीकी और षडविन्दु तेलकी नास लेनेसे कपार के सब रोग नाश होवें ॥ १-४ ॥
सैन्धवं श्वेतमरिचं सर्षपाः कुष्ठमेव च । बस्त मूत्रेण पिट्वा च नस्यं तन्द्रानिवारणम् ॥ ५ ॥ दूर्वारसो दाडिमपुष्पजो वा प्राणप्रवृत्तेऽसृजि नस्यमुक्तम् । स्तन्येन वाऽलक्तरसेन वापि विण्मक्षिकाणां विनिहन्ति हिक्काम् ॥ ६ ॥
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