Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas
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(३०२ ).
योगचिन्तामणिः ।
[ मिश्राधिकार:
नस्यं दाडिमपुष्पोत्थं रसो दूर्वाभवस्तथा । आम्रास्थिमिलिता दूर्वा नासिकाच्युतरक्तजित् ॥ ७ ॥
सैंधानोन, सफेद मिरच, सरसों, कुछ इनको बकरीके मूत्रमें 'बीसकर नस्य देनेसे तन्द्रा दूर होवे. दूबका रस, अनारके फूल इनकी नस्य देनेसे नकसीर दूर होवे. स्त्रीका दूध, महावरका रस, मक्खी की बीट इन सबकी नास देनेसे हिचकी दूर होवे । अनार के फूलका रस, दूका रस, आमकी गुठली इनको बके रस में मिलाकर नास देने से नकसीर बहती बन्द होवे ॥ ५-७ ॥
एकं वृहत्याः फलपिप्पलीकं शुंठीयुतं चूर्णमति प्रशस्तम् । प्रात्रापयेद् घ्राणपुटेऽतिसंज्ञां करोति चेष्टां विनिहन्ति मूर्च्छाम् ॥ ८ ॥ एलीयकंवचा तिक्ता मुस्ता कट्फलजं रसः । उद्भूलयेत्रिदोषोत्थे स्वेदाभिष्यन्दजे ज्वरे ॥ ९ ॥
कटेरीका एक फल, पीपल और सोंठ इनका चूर्ण कर कागजकी कुकनी बनाय नाक में फूंकनेसे मूर्च्छाका नाश करें और संज्ञा तथा वेश होवे. एलुआ, वच, कुटकी, नागरमोथा, कायफल इनके रसका उलन ( शरीरमें मालिश करना ) त्रिदोषज्वरवालेको सचेष्ट करे ॥ ८-९ ॥
नासिकया जलपानम् ।
द्विघटिघननिशायां प्रातरुत्थाय नित्यं पिबति खलु नरो यो प्राणरन्ध्रेण वारि । स भवति मतिपूर्णश्चक्षुषा तार्क्ष्यतुल्यो वलिपलितविहीनः सर्वरोगैर्विमुक्तः ॥ १ ॥ अपस्मारे तथोन्मादे शिरो
Aho ! Shrutgyanam
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