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सप्तमः ]
भाषाटीकासहितः ।
(३०५)
डका दूध, खांडके संग निसोत, दूधमें अथवा सोंठ, ऊंटनीका दूध, कबीला अथवा घोडाचोली गोली देवे । तीस वेग होवें तो विरेचनको श्रेष्ठ जानना, वीस वेग होवें तो मध्यम जाने और दश वेग होवें तो हीन जुलाब जाने । विरेचन जियादा होवें तो मूर्च्छा हो, भ्रम हो, मुदामें दरद होवे, कफ और रुधिरकी उलटी को और दस्तके गन्तेसे रुधिर जाय तो ठंढे पानीसे बार २ हाथ पैरोको धोवे ॥ ५- ११ ॥ शालिभिः पाष्टिकैर्दुग्धैर्मरैश्वापि भोजयेत् । पित्ते विरेचनं युंज्यादामोद्भूते तथा गदे । उदरे च तथाssध्माने कोष्ठशुद्धौ विशेषतः ॥ १२ ॥ कुष्टाः कृमिविसर्पवातासृक्पाण्डुरोगिणः । कफकासविषार्ताश्च विरेच्याः स्युभिषग्वरैः ॥ १३ ॥
साँठीचावल और मसूर की दाल पथ्यमें खावे और पित्त के रोग में विरेचन देवे तो आमरोग, उदररोग, अफरा, कोटा इनकी शुद्धि करे. विशेष करके कोट, अर्श, कृमी, विसर्प, वात रुधिर, पांडुरोग, कफ, खांसी, विषकी पीडावालेको विरेचन लेना चाहिये ॥ १२ ॥ १३ ॥
विरेचनायोग्याः । बालवृद्धावतिस्निग्धः क्षतक्षीणो रुजान्वितः । श्रांतस्तृषार्त्तः स्थूलश्च गुर्विणी च नवज्वरी ॥ १ ॥
नवप्रसूता नारी च मन्दाग्निश्च मदात्ययी । शल्यार्दितश्च रूक्षश्च न विरेच्या विजानता ॥ २ ॥
बालक, बूढा, अतिकोमल, क्षीणचल, डरपोक, हाराहुआ, प्यास करके दुःखित, मोटा, गर्भवती स्त्री, नये ज्वरवाला, हालकी जनी हुई
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