________________
(३०४ )
योगचिन्तामणिः ।
[ मिश्राधिकार:
घृत भोजन तथा खिचडी आदि नरम भोजन करावे, तेल लगावे । पसीना निकलवावे, पीछे भले प्रकार विरेचन करावे । लंघन और पाचनेसे जो रोग जीते गये हैं वे कदाचित् कुपित होजाते हैं, परंतु संशोधन (विरेचन ) से नाश हुए रोग फिर कभी उनका कोष नहीं होता, विरेचन वस्तु लेकर आंखोंको जलसे धोवे और फूल अतर इत्यादिककी कुछ सुगंध सूंघे, पान खावे, जहां हवा न लगती हो वहां बैठे, बहुतसी मेहनत न करे, सोवे नहीं, टंढे जलका स्पर्श न करे और जब प्यास लगे गुनगुना जल वारवार पीवे ॥ १-५ ॥ इच्छाभेदी च नाराचच्छुरीकारो रसोऽथवा । पूज्यपादगुटी शीतं रचत्युदयभास्करः || ६ || अभयामोदकं पश्चात्किरमालादिपंचकम् । दंती विशाला मुग्दुग्धखण्डेन त्रिवृता तथा ॥ ७ ॥ दुग्धेनैरंडतैलेन अथ दुग्धेन नागरम् । उष्टी पयोऽथ कंपिल्लं घोडाचोली गुटी तथा ॥ ८ ॥ मात्रोत्कृष्टा विरेचस्य त्रिंशद्वेगैः स्मृताऽथ वा । वेगैर्विंशतिभिर्मध्या हीनोक्ता दशवेगकैः ॥ ९ ॥
1
विरेकस्यातियोगेन मूर्च्छा भ्रंशो गुदस्य च । शूलं कफोऽतिच्छर्दिः स्याद्रक्तं वापि विरिच्यते ॥ १० ॥ तदा शीताम्बुना हस्तौ पादौ प्रक्षालयेन्मुहुः ॥ ११ ॥
इच्छाभेदी नाराच, छुरीकार रस, पूज्यपाद गोली, उदय भास्कररस विरेचनको निरा ठंढे जलसे देवे, अभयादिमोदक, अमलतासका पंचक, जमालगोटा, इन्द्रायण, सेहुं
Aho ! Shrutgyanam