Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 315
________________ (२९४) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकारः गैरिका स्फुटपादोऽपि जायते पंकजोपमः॥१॥ स्त्रीके स्तनका दूध, गुड, घी, शहद, गेरू इनको मिलाय लेप करनेसे फटे हुए पैर कमलके समान होवें ॥ १ ॥ भगे लेपः । सूकडं धातुकी जांगी सौराष्ट्री फुल्लकं तथा। माजूफलं होहबेरं लोधं दाडिमत्वक्तथा। कादंबर्या भगे लेपो गाढीकरणमुत्तमम् ॥१॥ कूठ, धायके फूल, बडी हरड, फूली फटकरी, माजूफल, दाउवेर, लोध, अनारकी छाल इनमें शराब मिलाकर लेप करनेसे योनि दृढ होय ( अर्थात् सिकुडजाय ) ॥१॥ लिङ्गदृढीकरणम् । मरिचं सैन्धवं कृष्णा तगरं बृहतीफलम् । अपामार्गस्तिलाः पुष्टं यवमाषाश्च सर्षपाः ॥१॥ अश्वगन्धा च तच्चूर्ण मधुना सह योजयेत् । अस्य सन्ततलेपेन मर्दनाच्च प्रजायते। लिंगवृद्धिः स्तनोत्सेधसहिता भुजकर्णयोः ॥२॥ बृहतीफलसिद्धार्थकव्याधिवचातगरतुरगगन्धाभिः । एभिः प्रलेपितं स्यात्पुरुषवराङ्गं हयस्येव ॥३॥ मिरच, सैंधानोन, पीपल, तगर, कटेरीका फल. ओंगा, तिलं, कूठ, जौ, उडद, सरसों, असगंध इनका चूर्ण शहदमें मिलाकर सदा लेप करनेसे तथा मलनेसे लिंग बढे । तथा घोडेके समान हो जाय, स्तनकी वृद्धि होवे तथा भुज और कान इनकी वृद्धि होवे । वृहतीफल, सरसों, वायविडंग, वच, तगर और असगंध इनका लेप करनेसे पुरुषका लिंग घोडेके लिंगसमान होता है ॥ १ ॥ Aho! Shrutgyanam

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