Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 319
________________ (२९८) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकारः रुधिरस्रावादौ कालनिश्चयः । शरत्काले वसन्ते च कुर्याद्रक्तस्रुतिनरः । तुम्बीशृंगीजलौकाभिः शिरामोक्षैः करैस्तथा ॥१॥ आषाढ आर्द्राशरदीह चन्द्रावसंतके मीनगते च भानौ। वमिविरेचं रुधिरतिश्चतदानराणांसुखदाभवन्ति ॥२॥ शरत्कालमें तथा वसंतकालमें स्त्री तथा पुरुष रुधिर निकलवावें. तुम्बी, सींगी, जोंक फस्त इन करके नसोमसे आषाढ और आाके सूर्यमें, शरत, चित्राके सूर्य, वसंत, मीन के सूर्य इन ऋतुओंमें वमन, दस्त (जुल्लाब) और रुधिर निकलवाना पुरुषोंका सुख देनेवाला है ॥ १॥२॥ - रक्तस्रावे शृंग्यादीनामियत्ता । दशाङ्गुलं हरेच्छृङ्गी तुम्बी च द्वादशाङ्गुलम् । जलौका हस्तमात्रं तु शिरा सर्वांगशोधिनी॥१॥ क्षुरश्चांगुलमात्रंतु गृह्णाति रुधिरं बलात् ॥२॥ दश अंगुल रुधिरको सींगी निकालती है और तूंबी बारह अंगुलको निकालती है, जोंक हाथभरका खून खींचती है और फस्त कुल शरीरका रुधिर निकालती है और नश्तर एक अंगुलमात्र बलकर खींचती है ॥ १ ॥२॥ रक्तस्रावे योग्यरोगी । शोफ दाहेऽङ्गपाके च रक्तवर्णेऽसृजः सुतौ । वातरक्त तथा कुष्ठे सपीडे दुर्जयेऽनिलेः ॥ १॥ पाण्डुरोगे श्लीपदे च विषदुष्टे च शोणिते । ग्रन्थ्यर्बुदापचीक्षुद्ररोगरक्ताधिमादिषु ॥ २॥ विदारीस्तनरोगेषु गात्राणां स्वरगौरवम् । Aho! Shrutgyanam

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