Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas
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सप्तमः ] भाषाटोकासहितः। (२९७) करनेसे नष्ट संधियोंका दर्द सौ वर्षतकका पकाहुआ घाव आराम होवे, यह दवा मुनीश्वरोंने कही है ॥ १ ॥ २॥
विषोपरि लेपः। . सिन्दूरं विषपारदं सुगणिका चोकं विषं सर्जिका क्षारंत्र्यूषणसंचलं सलवणा पंचार्णवाग्रे निशे । एरंडं स्वरगंधकं हिरमजा रक्तावली अनिका नेपालं नवसादरं क्षुपरकं भागः समैः पेषयेत् ॥ १॥ गोमूत्रेण गुडेन चार्कपयसा नुह्याश्च धूमा गृहादेतनामरसेन सिंहसहितः सारङ्गराजोऽगदः ॥२॥ सिन्दूर तेलियामीठा, पारा, सुहागा, चूक, निसोत, सज्जीखार, सोंठ, मिरच, पीपल,पांचों नोन, दोनों हलदी,कमलपत्र वच, फटकरी, मंडी, कपूर, मंजीठ, चीता, नौसादर इनकी बराबर मात्रा लेकर गोमूत्र तथा गुड या आकका दूध वा थूहरका दूध इनमें मिलाकर लगानेसे सम्पूर्ण विषरोग दूर होवें. यह सारंगराजने कहा है ॥१॥२॥
सर्पविषगदे लेपः। शम्भोः कण्ठनिवासनं मनशिला नौसादरं नीलकं साजीचौककचूरसावणरसं धूमं च मात्राद्वयम् । नेपालं विषगन्धकं च लशुनं शिल्या च मूत्रं नरेरित्येतद्विषनाशनं हि मुनिभिः कालाहिभुक्ते स्मृतम्
तेलियामीठा, मनसिल, नौसादर, नीलाथोथा, सज्जी. चौक, कपूर, सावनका रस, धुआं इनका दो टंक, जमालगोटा, गंधक, लहसन ये सब औषधि मनुष्यके मूत्रमें मिलाकर विषपाडापर लगावे तथा मले तो सर्पके काटनेका विष दूर होवे ॥ १॥ .
Aho! Shrutgyanam

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