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सप्तमः ]
माषाटीकासहितः ।
( २४१ )
मृन्मयां मुद्रितां दत्वा नन्दसंख्या प्रमाणतः । पृथग्भाण्डं तु संस्थाप्य वालुकार्द्धप्रमाणतः ॥ ७ ॥ मध्ये च शीशिकां धृत्वा मुखे मुद्रां च कारयेत् । द्वात्रिंशद्याममग्रिश्च स्वांगशीतेऽवतारयेत् ॥ ८ ॥ रसासिंदूरनामेदं भास्करेण विनिर्मितम् । aagri सदा ग्राह्यं नागवलीदलैः सह ॥ ९ ॥
पारेसे दूनी गन्धक डालकर कजली करे, फिर काचकी शीशी में भर मुख बन्द कर कपर मिट्टी ना बार कर एक पात्र में आधा भाग बालू भर बीचमें शीशी रख फिर ऊपर बालू भर मुख बन्द करे. सात कप मिट्टी कर बत्तीस प्रहरकी आंच देवे. जब ठण्ढा होजाय तब उतार लेवे | यह रससिन्दूर भास्करजीने कहा है. मात्रा दो रत्ती नित्य पानके साथ सेवन करे ॥ ६-९ ॥
मदनमुद्रा १-२ |
नागेन्द्र सिक्थकमयोमलसर्जिकाभिर्लाक्षा च चुंबकमधूफल भूर्जपत्रम् | संकुट्यमानमतसीफलतैलमिश्र श्रीपारदस्य मरणे मदनाख्यमुद्रा ॥ १ ॥
१- सन्दूर, मोम, लोह, कीट, सज्जी, लाख, चुम्बक पत्थर, महुआ फल, भोजपत्र इनको कूटकर अलसी तेलमें मिलावे. यह पारा मारने के लिये मदनमुद्रा कही है ॥ १ ॥
उदुम्बरार्कवट दुग्धपलं पलं च लाक्षापलं पलचतुष्टय भूर्जपत्रम् । संकुट्य सर्वमत सीफलतैलमिश्रं श्रीपारदस्य मरणे मदनाख्यमुद्रा ॥ २ ॥
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