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सप्तमः
भाषाटीका सहितः
(२४९)
सब औषधि बराबर लेवे . फिर कांच की शीशीमें भरकर एक शीशी उसके सम्पुटमें देवे, फिर वालुकायन्त्रमें शीशीके गलेतक बालू भरदेवे और हांडी के मुखमें कपर मिट्टी कर चूल्हेपर रख क्रमसे अग्नि देवे, ऐसे बारह प्रहर आँच देवे तो पाग उत्तम मरे जब ठंढा होजाय तब फोडकर ऊपरकी गन्धकछोड देवे, नीचेके पाराको काममें लावे ॥ १-१०॥ हिंगुद्ध से पारा काढने की विधि |
निम्बूरसैर्निम्बपत्ररसैर्वा याममात्रकम् । पिट्वा दरदमूर्ध्व च पातयेत्सूतमुक्तवत् ॥ ततः शुद्धं रसं तस्मान्नीत्वा कार्येषु योजयेत् ॥ १ ॥ नींबू के रस तथा नीमके पत्तोंके रसम हिंगलको एक प्रहर खरल करे फिर डमरूयन्त्रमें चढावे, उससे उड़कर पारा ऊपर जा लगे उसे शुद्ध जाने और उसको सब काममें लावे ॥ १ ॥
हरतालशुद्धिः ।
पलाशभस्म मृद्भाण्डे क्षिप्त्वोपरि च तालकम् । तालोपरि पुनर्भस्म दत्त्वा स्थालीं विमुद्येत् ॥ १ ॥ चुल्ल्यां पचेच्चतुर्यामं पश्चात्तत्सिद्धतां व्रजेत् । गाढे तथाऽयसि न्यस्तं निर्धूमं च तदाशुभम् ॥ २॥ खण्डेन रक्तिकामात्रं खादेत्कुष्ट निवृत्तये । पथ्यं मकुष्ठचणका लवणस्नेहवर्जिताः ॥ ३ ॥
ढाकी राखको हांडी में भरकर बीचमें हरताल रक्खे, फिर मुद्रा चढाय चूल्हे पर रखकर चार प्रहर अनि देवे, जब मृत हो जाय तब इस प्रकार परीक्षा करे कि, लोहेको गरम कर उसमें डाले जो धुआं न देवे तो जाने शुद्ध होगई । इसको खांडमें एक रत्ती देवे तो कोट दूर होवे | पथ्य- मोठ, नोन, चना, तेल घृत न देवे इनको छोडकर और पथ्य देवे ॥ १-३ ॥
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