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सतमः ]
भाषाटीकासहितः । ..
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जमालगोटा, मिरच, सुहागा इनको बराबर लेकर और इनसे आधा हिंगुल डाले यह रस छुरिकार नामसे प्रसिद्ध है ॥ ३ ॥ गाथाश्लोक ॥ ज्वरहारी रसः । नेपालकं टंकणपारदं च तुर्य तथा चामलगन्धसारम् । सर्वैः समांशै रस एव पिष्टं ज्वरेषु सर्वेषु च नित्यमिष्टम् ॥ १ ॥ रसः प्रदेयः स्फुटमेकगुंजा पथ्यं सिता तन्दुलमुद्रयूषाः । श्रीपूज्यराजैः कथितो रसोऽयं सद्यो ज्वरं चापि निहंति सत्यम् ॥ २ ॥
जमालगोटा, शुद्ध सुहागा, पारा, शुद्ध गंधक इन सबको बराबर ले, चूर्ण कर लेवे, इसमेंसे गुंजा प्रमाण लेवे, पथ्यमिश्री, चांवल, मूंगका पानी देवे तो सम्पूर्ण ज्वरोंको दूर करे. यह रस श्रीगुरुराजने कहा है और शीघ्र ज्वरका नाश करता है ॥ १ ॥ २ ॥
ज्वरादौ - चिन्तामणिरसः १-२ ।
व्योषं गन्धं रसेन्द्रं विषमपि लवणं नागवङ्ग तथाऽभ्रं सारं त्रिक्षारयुक्तं गजकणचविका साग्निकं जीरके द्वे । पथ्या वा चूर्णमेतत्प्रबलरसयुतं नागवल्लीकरीर निम्बू का रसादिप्रबलरसयुतं शुद्धचिन्तामणीशः ॥ १ ॥
१ - सोंठ, मिरच, पीपल, गन्धक, पारा, तेलियामीठा, पांचों नोन, सीताभस्म, वंग अभ्रक, सज्जी, खार, सुहागा, जवाखार, चत्र्य, गजपीपल, चीता, दोनों जीरे हरड, पारा, गन्धक इनको पानके रस, करेला के रस, नीम्बूके रस, और अदरखके रसकी सात २ भावना देवे, शुद्धचिन्तामणि रस है ॥ १ ॥
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