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सप्तमः ]
माषाटीकासहितः ।
( २७३ )
मुनक्का ५० पल ले दो द्रोण पानीमें औटावे जब चौथाई रहजाय तब कपडे में छानकर ठंढा कर फिर २०० पल गुड़ डाले. फिर तज, तेजपात, इलायची, नागकेशर, प्रियंगु, मिरच, पीपल, वायविडंग इन सबको एक एक पल लेकर चूर्ण कर डाल कर हिलाता जाय । जब पककर शुद्ध हो जाय तब वर्ते । यह द्राक्षारिष्ट उरःक्षत, क्षय, खांसी, श्वास, आदिका नाश करे ॥ १-४ ॥
लोहासवः । लोहचूर्ण त्रिकटुकं त्रिफला च यवासकम्। विडङ्ग चित्रकं मुस्ता चतुःसंख्यापलं पृथक् ॥ १ ॥ चूर्णीकृत्य ततः क्षौद्रं चतुः षष्टिपलं क्षिपेत् । दधागडतुलां तत्र जलं द्रोणद्वयं ततः ॥ २ ॥ घृतभाण्डे विनिक्षिप्य निदध्यान्मासमात्रकम् । लो मर्त्यः पिबेद्वह्निकरं परम् ॥ ३ ॥ पांडुश्वयथुगुल्मानि जाठराण्यर्शसां रुजम् । कुष्ठं प्लीहामयं कण्डूं कासं श्वासं भगन्दरम् ॥ ४ ॥ अरोचकं च ग्रहणी हृद्रोगं च निवारयेत् ॥ ५ ॥
लोहचूर्ण ४ टंक, सोंठ, मिरच, पीपल १२ टंक, त्रिफला १२ टंक, जवामा, वायविडंग, चीता, मोथा प्रत्येक चार चार टंक ले इनका चूर्ण कर शहद ६४ पल, गुड़ १०० पल, पानी दो द्रोण चिकने पात्रमें भर सब औषधियोंको डाल एक महीनातक राखे तो यह लोहासव शुद्ध होता है । यह लोहासव अग्निको दीप्त करे एवं पांण्डुराग सृजन, गुल्म पेटके रोग, अर्श, कोट, प्लीहा, आम, खाज, खांसी, श्वास, भगन्दर, अरुचि, संग्रहणी, हृदयरोग आदिको दूर करता है ॥ १-५ ॥
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Aho ! Shrutgyanam