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सप्तमः] भाषाटीकासहितः । (२५३
तथा शंखस्य खण्डानां भागानष्टौ प्रकल्पयेत् । क्षिपेत् सर्व पुटश्चान्तश्चूर्ण लिप्तशरावयोः॥४॥ गर्ते हस्तोन्मिते धृत्वा पुटेद्गजपुटेन च । स्वांगशीतं समुद्धृत्य पिष्वा तत्सर्व मेकतः॥५॥ षड्गुंजासमितं चूर्णमेकोनत्रिंशदूषणैः । घृतेन वातजे दद्यान्नवनीतेन पित्तजे॥६॥ क्षौद्रेण श्लेष्मजे दद्यादतीसारक्षये तथा। अरुचौ ग्रहणीरोगे कासमंदानले तथा ॥७॥ कासश्वासेषु गुल्मेषु लोकनाथो रसो हितः । तस्योपरि घृतानं च मुंजीत कवलत्रयम् ॥८॥ मंचे क्षणैकमुक्तानं शयीतानुपधानके । रसाच्च जायते तापस्तदा शर्करया युतम् । गुडूच्या वाथ गृह्णीयाद्वंशलोचनयाथवा ॥९॥
शुद्ध और भूखा पारा दो भाग, गंधक दो टंक इनकी कजली कर पारेसे चौगुनी कौडी डाले, सुहागा एक टंक डालकर गौके दूध खरल करै फिर शंखकी भस्म एक टंक डालकर फिर सबको सकोरेमें रख कपरमिट्टी कर एक हाथ गड्ढे तथा गजपुटमें फूंक देवे. जब ठंढा हो जाय तब निकाल लेवे फिर पीसकर काममें लावे । छः रत्ती रस २९ काली मिरचोंके साथ, वायुवालेको घृतमें देवे और पित्तवालेको माखनमें, कफवालेको शहदमें देवे । अतीसार और क्षयमें शहदके साथ लेवे, अरुचि, संग्रहणी, खांसी, मन्दाग्नि, श्वास, गुल्ममें लोकनाथरस फायदा करता है और तीन ग्रासों के साथ वृत लेवे और खाटपर सीधा
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