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सप्तमः ]
भाषाटीकासहितः ।
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२ - शीशा, पारा विधिपूर्वक मिलावै । विधि - शीशेको गलाकर चूने के पानाम तीन चार डाले, पारेको सात बार कपडे में छानलेवे फिर ईंट के कुक्कुआसे एक प्रहर खरल करे फिर शीशेको गलाकर पारेमें डाल देवे, मिरच ४ टंक, तेलिया मीठा एक टंक बन्दाल ( डोडी ) की ७, भांगरेका रस कचूरकारस अकरकराका रस, सोंठका रस, पानका रस इनकी सात २ भावना देवे। यह रस श्लेष्मविकार, वायुविकार, पेटके रोग और सन्निपातज्वरादिकों को भी नाश करे ॥ १ ॥ श्वास कुठारो रसः ।
रसं गन्धं विषं चैव टंकणं च मनः शिला । एतानि टंकमात्राणि मरिचं टंककाष्टकम् ॥ १ ॥ एकैकं मरिचं दत्त्वा खल्वे सूक्ष्मं विमर्दयेत् । त्रिकटुं टंकषट्कं च दद्यात्पश्वाद्विमर्दयेत् ॥ २ ॥ रसः श्वास कुठारोयं पूर्ण खण्डेन बुद्धिमान । श्वासेऽतिदुस्तरे दद्याद् गुञ्जामात्रं प्रयत्नतः ॥ ३ ॥
पारा, गन्धक, तेलिया मीठा, सुहागा, मनशिल इन सबको एक एक टंक लेवे | मिरच ८ टंक ले एक एक मिरच डालता जाय और खरल करे सोंठ, मिरच, पीपल ६ टंक डालकर महीन पीसे । इस श्वासकुठार नाम रसको बुद्धिमान पुरानी खांडके साथ देवें । बडे कठिन श्वासमें एक रत्ती मात्रा यत्न से देवे ॥ १३ ॥
आनन्दभैरवरसः ।
हिंगुलं वत्सनागं च मरिचं टंकणं कणा । जंबीरस्य रसं दत्त्वा मर्द्य यामचतुष्टयम् ॥ १ ॥ श्वासे कासे सन्निपाते ग्रहण्यां शूलमेहयोः । आस्मारानिलच्छद रसश्वानन्दभैरवः ॥ २ ॥
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