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योगचिन्तामणिः ।
[ मिश्राधिकारः
शुद्ध पारा १ टंक, शुद्ध गन्धक १ टंक, तामेश्वर ३ टंक, मिर्च १० टंक, अभ्रक ४ टंक, तेलिया मीठा १ टंक सब इकट्ठी कर इमलीके रस में एक प्रहर मर्दन करें, इस भूतांकुश रसको एक मासा ले शहद और बहेडेकी राखके साथ चाटने से वायुरोग और खांसी दूर हो जाता है ॥ १-३ ॥
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तालकेश्वरः ॥
तालं ताप्यं शिला सूतं शुद्धं सैंधवटंकणम् । समांशं चूर्णयेत् खल्वे सुताद्विगुणगन्धकम् ॥ १ ॥ गन्धतुल्यं मृतं ताम्र जम्बीर्या दिनपंचकम् । मर्द्य स्वद्भिः पुढे पाच्यं भूधरोदरसंपुटे || २ || पुटेपुटे द्रवैर्म सर्वमेकत्र पट्पलम् । द्विपलं मारितं ताम्रं लोहभस्म चतुःपलम् ॥ ३॥ जम्बीराम्लेन तत्सर्वं दिनं मद्ये पुटे लघु । त्रिंशदंशं विषं चास्य क्षिप्त्वा चूर्ण विमर्दयेत् ||४|| महिष्याज्येन संमिश्रं कर्षार्ध भक्षयेत्सदा । मध्वाज्यैवकुचीचूर्ण कर्षमात्रं लिहेनु । सर्वकुष्टान्निहन्याशु महातालेश्वरो रसः ॥ ५ ॥
हरताल, सोनामक्खी, मनसिल, पारा शुद्ध, शिलाजीत, शोधा सुहागा इन सबको बराबर लेकर चूर्ण कर पारेसे दूना गंधक, गंधकके बराबर तामेश्वर लेकर जंबीरीके रसमें पांच दिन मर्दन करे | ऐसे ६ पुट देवे और जमीन में गाड देवे। दो पुटों में जंबीरीका रस देता जाय सबका प्रमाण छः पल एकत्र कर दो पल तामेश्वर और लोहभस्म ४ पल इनको जंबीरीके रसमें एक दिन ईस्सा तेलिया मीठा डालकर चूर्ण कर
मर्दन करे और तीसवां
सके घीके
साथ आधा
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