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(२४४) योगचिन्तामणि। [मिश्राधिकार:
मर्दयेत्सर्वगात्रेषु यामयुग्मं दिनत्रये । नानं शीतलनीरेण सूतदोषप्रसान्तये ॥ ४॥ मुनका, पेठा, खांड, तुलसी, सोफ, लौंग, तज, नागकेशर, गंधक इनकी समान मात्रा ले इन सबको गंधक संयुक्त चार टंक खाय, उपरसे दूध और घी पीवे, एक एक कर्ष जुदी २ औषधि लेवे, यह सब रोगोंको शांत करे और पारेके विकारोंको दूर करता है. पान
और भांगरेका रस एक एक प्रस्थ लेवे, तुलसीपत्रका रस एक प्रस्थ चकरीका दूध एक प्रस्थ इनको २ प्रहर शरीरमें मर्दन करे और ठंडे पानीसे स्नान करे तो पारेका दोष दूर होय ॥ १-४॥
भस्मसूतम्।
शुद्धं मूतं समं गन्धं वटक्षीरविमर्दयेत् । पाचयेन्मृत्तिकापात्रे वटकाष्ठैर्विचालयेत् ॥ १ ॥ लवमिना दिनं पाच्यं भस्म सूतं भवेध्रुवम् । द्विगुनं नागपत्रेषु पुष्टमनेश्च वृद्धिकृत् ॥२॥
पारा ४ टंक, गंधक ४ टंक, बडके दूधमें मर्दन करे और मिट्टीके पात्रमें पकाये, बडकी लकडीसे हिलाता जाय, एक दिन मन्दाग्नि देय तो पारा भस्म हो जायगा, मात्रा एक रत्ती पानमें देवे तो पुष्टि करै, अग्नि दीपन और क्षुधाको बढावे ॥ १.२ ॥
हरितालशुद्धिः । तालकं कणशः कृत्वा तच्चूर्ण कांजिकेक्षिपेत् । दोलायंत्रेण यामैकं ततः कूष्मांडवैः ॥१॥ तिल तैलं पचेद्यामं यामं च त्रिफलाजलैः ।
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