________________
सप्तमः ]
भाषाटीकासहितः ।
( २४५)
एवं यंत्रे चतुर्यामं पाच्यं शुद्धयति तालकम् ॥ २ ॥ शुद्धं स्यात्तालकं छिन्नं कूष्माण्डसलिलेततः । चूर्णोदके पृथक्कैले भस्मीभूतं न दोषकृत् ॥ ३ ॥ तालकं पोट्टली बद्धा मृद्भाण्डे कांजिके क्षिपेत् । दोलायंत्रेण यामैकं ततः कूष्माण्डजैद्रवैः ॥ ४ ॥ तिलतैले पचेद्यामं यामं च त्रिफलाजलैः ॥ ५ ॥
हरितालके टुकडे कर कांजीमें डाल एक प्रहर दोलायन्त्र में पकावे फिर पेठेके रस में एक प्रहर पकावे, तिलके तेल और त्रिफलेके काढ़े में एक एक प्रहर पकावे, ऐसे चार प्रहर आँच देवे तो हरिताल शुद्ध होवे | उस शुद्ध हरितालको पेठेके रसमें पकावे, फिर तेल में तथा एक प्रहर त्रिफलेके रसमें पकाय शुद्ध करलेवे तो निर्दोष होय ॥ १-५ ॥
तालं विचूर्णयेत्सूक्ष्मं मद्ये नागार्जुनीद्रवैः । सहदेव्या बलायाश्च मयेदिवसद्वयम् ॥ ६ ॥ तत्तालं रोटकं कृत्वा च्छायायां च विशोषयेत् । इंडिकायंत्र मध्यस्थं पुक्षभस्म तलोपरि ॥ ७ ॥ पाचयं वालुक यंत्रेण भिदितं चण्डवह्निना । स्वांगशीतं समुद्धृत्य सर्वयोगेषु योजयेत् ॥ ८ ॥
हरितालको नागार्जन के रसमें ३ दिन और सहदेवी कंधईके रसम २ दिन मर्दन करे फिर हरितालकी टिकिया कर छाया में सुखावे, फिर बालुकायन्त्र में ढाक की राख भर बीच में टिकिया रख पकावे, अतितीक्ष्ण अग्नि देय, जब ठंढी होजाय तब निकाल सम्पूर्ण काममें लावे ॥ ६-८ ॥
Aho! Shrutgyanam