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योगचिन्तामणिः । [ काथाधिकारः
दशमूलकायः ।
शालपर्णी पृष्टपर्णी बृहतीद्वयगोक्षुरैः। बिल्वाग्निमंथस्योनाककाश्मरीपाटलायुतैः ॥ १ ॥ दशमूलमिति ख्यातं कथितं तज्जलं पिबेत् । पिप्पलीचूर्णसंयुक्तं वातश्लेष्महरं परम् ॥ २ सन्निपातज्वरं हन्ति सूतिकादोषनाशनः । हृत्कंठग्रहपावर्ति तन्द्राम स्तकशूलहृत् ॥ ३ ॥
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शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, दोनों कटेरी, गोखरू, बेलगिरी, अरणी, अरऌ, खंभारी ( वृक्षविशेष ) पाढर यह दशमूल नामक काढा प्रसिद्ध है, इस क्वाथको पीपल के चूर्णके संग लेवे तो वात श्लेष्मको दूर करें । सन्निपात, प्रसूत, हृदयरोग, कंठग्रह, पसलीका दरद तंद्रा शिरदरद इनका नाश करे ॥ १-३ ॥
वातशोफे पुनर्नवादिकाथः १ - २ |
पुनर्नवानिव पटोलशुंठी तिक्तामृता दार्व्यभयाकपायः । सर्वागशोफोदर पाण्डुरोगान्सम्यक्प्रयुक्तः सकलान्निहन्ति ॥ १ ॥
१- सांठी की जड, नींबकी छाल, पटोलपत्र, सोंठ, कुटकी, गिलोय, दारु हलदी, हरड इनकी समान मात्रा लेकर
१ - श्री पाणिनीज्वलन मंथवसंतदूतीटिंक बिल्वमिति तलघु पंचमूलम् । व्याघ्रीवृहत्य तिगुहाश्वगुहाश्वदंष्ट्रा ज्येष्ठं द्वयं च गदितं दशमूलमेतत् ॥ शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, अरणी, माधवीलता, बेल ये लघुपंचमूल हैं। दोनों कटेरी, गोखरू, कुंभारी, पाढर ये बृहत् पंचमूल हैं, और छोटे मिलकर दशमूल कहा जाता है | ऐसा भी पाठ है ॥
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