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पञ्चमः] भाषाटीकासहितः। (१८५)
आकका दूध २ पल, थूहरका दूध २ पल, हरड १६ टंक, कवीला १०१ टंक, प्रियंगु १६ टंक, अमलतास १६ टंक, सेहुंड १ पल, नीलका बीज १ पल, निसोथ १ पल, दन्ती १. पल, शंखाहुली १ पल चित्रक १ पल, विधायरा १ पल, देवदारु १ पल, जमालगोटा १ पल, सातला १ पल, कौंच १ पल, कुटकी १ पल, वायविडंग १ पल, पीपलामूल १ पल इन सब औषधियोंको एक एक पल लेकर एक प्रस्थ घृतमें औटावे, फिर जिसका कोठा मलयुक्त हो उसको एक बूंद दे और जितनी बूंद देवे उतनेही दस्त होवें और कोढ, गुल्म, अफरा, उदावत, वमन, भगन्दर और आठ प्रकारकी उदरव्याधि दूर होवे, जैसे इन्द्र के वज्रस वृक्ष कटता है वैसे इस बिन्दुनाम घृतसे विरेचन होवे ॥ १-६॥
दुष्टत्रणादौ जात्यादिकं घृतम् । जातीपत्रपटोलनिंबकटुकादाऊनिशाशारिवामंजिष्ठाभयसिक्थरक्तमधुकैर्नक्ताबीजैः समम् । सर्पिः शीघ्रमनेन सूक्ष्मवदनं मर्माश्रितः श्रावणा गंभीराः सरुजो व्रणाः सुगतिकाः शुध्यंति रोहन्ति च ॥ १॥ जायफलके पत्ते, पटोल, नींबकी छाल, कुटकी, दारुहलदी, मञ्जीठ, हरड, गौरीसर, कूठ, मोम, केशर, मुलहठी, कंजा इनकी समान मात्रा लेकर घृत डाल काढा करे, यह घृत गम्भीरव्रण, दुष्टव्रण फोडा फुसियोंको दूर करे ॥ १॥
रुधिरविकारे महातितकं घृतम् । करंजसप्तच्छदपिप्पलीनां मूलानि कृष्णा मधुका विशाला । यवासकश्चंदनमुत्पलं च सत्रायमाणा
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