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- सप्तमः ]
भाषाटीका सहितः ।
( २३३)
तांबे के सूक्ष्म पत्र कर शोध लेवे, फिर छाछ में तीन दिन रख मर्दन करें, फिर चौथाई पारा डालकर इमलीके रसमें एक प्रहर मर्दन करे, फिर तांबे के पत्र निकालकर और दुगुनी गन्धक नींबूके रसमें घोटकर तांबेके पत्रोंपर लेप कर गोली बनावे. फिर दो सकोरोंको बीचमें गोली रखदेवे, कपरोटीकर एक हांडीमें बालू वा नोन भर बीचमें सरवा रखदेवे, हांडी को कपर मिट्टी कर चूल्हे पर चढावे, अनि क्रमसे देवे, पहले मन्दाग्नि पीछे मध्यम तत्पश्चात तीक्ष्णाग्नि देवे, चार प्रहर भले प्रकार अग्नि देवे जब ठंढा होजाय तब निकाल लेवे, यह तांबेश्वर रस हैं ॥ १-५ ॥ तस्य गुणा दोषाश्च ।
ऊर्ध्वश्वासं कफं कासं हृद्रोगं पांडुतां क्षयम् । जयेत्प्रमेहकुष्ठाशः शोफशूलानिमन्दताः ॥ १ ॥ अशुद्धं वातसुत्केदं मूर्च्छादोषं करोति च । अपक्कं कांतिधातुघ्नं भ्रमशूलोष्मकुष्ठनुत् ॥ २ ॥ न विषं विषमित्याहुस्तानं तु विषमुच्यते । एको दोषो विषे ताम्रे चाष्टौ दोषाः प्रकीर्तिताः ॥ ३ ॥ भ्रमो मूर्च्छा विदाहश्च स्वेदः केदस्तथा तमः । अरुचिश्वित्तसंतापस्ताम्रे दोषः प्रकीर्तिताः ॥ ४॥ ऊर्ध्वश्वास, कफ, खांसी, हृद्रोग, पांडुरोग, क्षय, प्रमेह, कोढ, अर्श, सूजन, शूल और मन्दाग्निको दूर करे और जो अशुद्ध रहजाय तो बात, उत्क्लेद, मूर्च्छा दोष करे, अपक्क हो तो धातुका नाश, भ्रम, शूल, गरमी, को करे । विषहीको विष मत जानो, ताम्र, विषहै। विषमें एक दोष है, ताम्बेमें आठ दोष हैं-भ्रम, मूर्च्छा, दाह, स्वेद क्लेद तम अरुचि पित्त संताप ये तांबेमें दोष हैं ॥ १-४ ॥
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वङ्गमारणविधिः । मृत्पात्रे द्राविते वङ्गे चिञ्श्चाश्वत्थत्वचो रसः ।
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