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सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (२१९)) सर्वत्रणानि गुल्मांश्च प्रमेहपिडिकास्तथा । प्रमेहोदरमन्दामिकासश्वयथुपाण्डुताः ॥ ८॥ हन्ति सर्वामयानित्थं सुखयुक्तो रसायनः । किशोरकाभिधानोऽयं कुर्यात्कैशोरकं बलम् ॥९॥
अम्लं तीक्ष्णमजीर्ण च व्यवायं श्रममातपम् । मद्यं रोषं त्यजेत्सम्यग्गुणार्थी पुरुसेवकः ॥ १० ॥ त्रिफला ४८ पल, गिलोय,१० प्रस्थ इनको २४ सेर पानी में डालकर लोहेके पात्रमें पकाये,जब आधा पानी शेष रहे तब उतारकर कपडेमें छानलेवे, फिर गुग्गुल १ प्रस्थ डालकर औटावे, कलछीसे हिलाता जाय, जव गुडकी चासनीक समान गाढा होजाय तब उतार ठंढा कर निम्नलिखित औषधियोंको डाले-हरड २ पल, गिलोय २ पल, सोंठ, मिरच, पीपल २४ टंक, वायविडंग ८ टंक, निसोय ४ टंक, जमालगोटेकी जड २ टंक । फिर सबको मिलाकर एक एक टंकके प्रमाण गोलियां बनावे और चिकने बर्तन में रख छोडे, दोष और बलाबल देखकर वैद्य गरम पानीके साथ अनुपान देवे अथवा दूध वा मंजीठके काढेसे देवे तो सम्पूर्ण रोग, वातरक्त. त्रिदोष, सब प्रकारके व्रण, गुल्म, प्रमेह, फुन्सी गांठ, १८ प्रकारका कोढ उदर विकार, मन्दाग्नि, खाँसी, सूजन, पांड्डरोग, आमवात इन रोगोंको नाश करे और यह किशोर गुग्गुल जवानकासा बलकरे । जो गुणकी इच्छा को तो खट्टा, चरपरा, अजीर्ण, श्रम, धूप, मद्य, रोष इनको त्याग करे ॥ १-१० ॥
त्रिफलागुग्गुलुः। त्रिपलं त्रिफलाचूर्ण कृष्णाचूर्णपलोन्मितम् । गुग्गुलं पञ्चपलिकं कुट्टयेत्सर्वमेकतः ॥ १॥
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