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चतुर्थः ]
भाषाटीकासहितः ।
( १७१ )
किरातश्च पिबेदेषां क्वाथं शीतं समाक्षिकम् ॥ जयेत्सशूलं प्रदरं पीत वेतासितारुणम् ॥ ५ ॥ दारूहल्दी, रसौत, मोथा, भिलावा, बेलगिरी, अडूसा, चिरायता इनका काढा शहदसंयुक्त ठंडा कर पीनेसे शूलसहित पीला, सफेद, काला और लाल प्रदर नाश होवे ॥ ५ ॥
विदध्यात्प्रदरे
पालाशरोहीतक मूलपाठाक्वाथं सपाण्डौ । पीते शितेऽयं मधुसंप्रयुक्तः प्रसिद्धयोगः शतशोऽनुभूतः ॥ ६ ॥
ढाक, लालकरंजी जड, पाठा इनका काढा मिश्री तथा शहद संयुक्त पीवे तो पीलिया संयुक्त प्रदररोग दूर होवे | यह क्वाथ सैकडों वार परीक्षा किया हुआ है ॥ ६ ॥
छर्दिरोगे क्वाथः ।
क्वाथो गुडूच्यः समधुः सुशीतः पीतः प्रशांति वमनस्य कुर्यात् । विण्मक्षिकाणां मधुनाऽवलीढा सचंदनं शर्करयाऽन्विता वा ॥ १ ॥ नीरेण सिंधूत्थरजोऽतिसूक्ष्मं नस्येन नूनं विनिहन्ति हिक्काम् । मयूरपिच्छस्य शिखास्य कृष्णा मध्वन्विता वा कटुका सधातुः ॥ २ ॥
गिलोयका काढा शहदके साथ ठंढा कर पीवे तो बमन दूर होय और मोरपंखी चंद्रिकाको जलाकर शहदके साथ ठंढा कर पीवे तो वमन दूर हाथ और मक्खीकी विष्ठा शहदके संग चाटे तो वमन दूर होय और पानीसे सैंधानोन पावे अथवा नाश देनेसे हिचकी दूर होवे और मोर पंखकी चंद्रिकाको जलाकर शहदके साथ चाटे तो वमन नाश होवे अथवा कुटकी के सेवन से वमन नाश होवे ॥ १-२ ॥
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