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तृतीयः ] .
भाषाटीकासहितः ।
( १४१ )
पीतम् । अलर्कसक्तं विषमाशु हन्ति सद्योभवं वायुरिवाभ्रवृन्दम् ॥ ५ ॥ छायाशुष्कार्कमूलं च मरीचं कर्ष भक्षयेत् । तद्दणं तत्क्षणादेव दहेलोहशलाकया ॥ ६ ॥ चोकमाज्यं मेघनादौ देयौ श्वानविषापहौ । अन्येषां सर्वकीटानां विषं हन्ति चराचरम् ॥ ७ ॥
गुड, तेल, आकका दूध लेपन करे तो श्वानका विष दूर होवे । ओंगाकी जड ४ टंक शहदमें चाटे तो कुत्तेका विष जाय । मुर्गे की बीटका लेप करे तो कुत्तेका विष दूर होय । कुमारपाठा, सैंधानोन शहद गरम जल के साथ पीवे तो तीन दिनमें दर्द दूर होय अथवा घीसे चौलाईकी जडको पीवे या तुलसीकी जड घीसे पीवे वा तुलसीको चावल के पानी से पीवे तो कुत्तेका विष दूर होवे । तेल, गुड, आकका दूध इनको पानाके संग पीनेस कुत्तेका विष एस दूर होवे जैसे बादलोंका समूह पवनसे । अथवा छाया में आककी जडको सुखा चार टंक मिरचोंके साथ खाय तो कुत्तेका विष शीघ्रही जाय । नीलाथोथा, घृत, चौलाईका रस इनको मिलाकर कुत्तेके काटेको देवे तो विष दूर होवे. अथवा लोहे की कील गरम कर दाग देवे, इन दवाइयोंसे सब कीटादिकों के विष दूर होते हैं ॥ २७॥
कुष्ठविकारे त्रिफलादिगुटिका ।
त्रिफला षट्पला कार्या भल्लातानां चतुः पलम् । बाकुची पंचपलिका विडंगानां चतुःपलम् ॥ १ ॥ हतं, लोहं त्रिवृचैव गुग्गुलुश्च शिलाजतु । एकैकं पलमात्रं स्यात्पलार्द्ध पौष्करं भवेत् ॥ २ ॥
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