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योगचिन्तामणिः । [ गुटिकाधिकारः
वर्ती है. सो सम्पूर्ण नेत्ररोगोंको नाश करे, इसको पानीसे आंजे तो तिमिर जाय. शहदसे आंजे तो फूला जाय, बकरीके मूत्रसे आंजे तो रतौंधी जाय, गोमूत्रसे आंजे तो आंखोंका चिमचिमाहट जावें ॥ १-३॥ नेत्रावगुटिका | धात्र्यक्षपथ्याबीजानि एकद्वित्रिगुणानि तु । पिट्वा वर्ति जलैः कुर्यादंजनं त्विह रेणुकम् । नेत्रस्रावं हरत्याशु वातरक्तकजं तथा ॥ १ ॥
त्रिफलेकी मिंगी क्रमसे १, २, ३ भाग इनको पीसकर पानी में गोली बनावे. फिर अञ्जन करे तो आंखोंके पानी, वायु और रुधिरपीडाको दूर करे ॥ १॥
रात्र्यन्धताया गुटिका ।
रसांजनं हरिद्रे द्वे मालती निम्बपल्लवाः । गोशकृद्रससंयुक्ता वर्तिर्नक्तांध्यनाशिनी ॥ १ ॥
रसोत, सुरमा, दोनों हलदी, मालतीके पत्ते, नीम के पत्ते इनकी atara रस में गोली बनावे और आंख में आंजे तो रतौंधका नाश होवे ॥ १ ॥
सप्तामृतगुटी | त्रिफलालोहचूर्णे च माक्षिकं मधुयष्टिका । सायमाज्यान्वितं माषं सद्यस्तिमिरनाशनम् ॥ १ ॥ त्रिफला, सार, शहद और मुलहठीको सायंकालमें घीके संग खाय तो शीघ्रही तिमिररोगका नाश करे ॥ १ ॥
अतिनिद्रायां गुटिका ।
क्षौद्राश्वलालासंघृष्टैर्मरिचैर्नेत्रमञ्जयेत् । अतिनिद्रा शमं याति तमः सूर्योदये यथा ॥ १ ॥
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