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योगचिन्तामणिः ।
[ गुटिकाधिकारः
टैंक (दन्ती वह है जिसका फल जमालगोटा होता है ), मिश्री २४ टंक, निसोथ ३२ टंक इनका चूर्ण कर शहद में गोली बनावे और एक गोली नित्य ठंढे पानी के साथ खाय तो जबतक गरम जल न पीवे तबतक दस्त होय और पाण्डुरोग, विषरोग, कृशता और जंघा के सब रोग, मस्तकरोग, मूत्रकृच्छ्र, अर्श, भगंदर, पथरी, मेह, कोट, दाह, सूजन, उदररोगादिकों को दूर करता है ॥ १-५ ॥
अजमोदादिगुटिका या चूण १-२ ।
अजमोदा मरिचकणा विडंगसुरदारुचित्रकशताह्वा । सैंधव पिप्पलिमूलं भागौ नवकस्य पलिकः स्यात् ॥ १ ॥ शुण्ठी दशपलिका स्यात्पलानि तावंति वृद्धदारोव । दंत्याः पलानि पंच च सर्वाण्येक कारयेच्चूर्णम् ॥ २ ॥ समगुडवटिका अदतचूर्ण वा कोष्णवारिणा पिबतः । नइयंत्यनिलोद्भूताः सर्वे रोगास्तथा वाताः ॥ ३ ॥
१- अजमोद, मिरच, पीपल, वायविडंग, देवदारु, चित्रक, सोवा, सैंधानोन, पीपलामूल ये सब नौ पल और सोंठ १० पल, विदारी कन्द १० पल, दन्ती ५ पल, हरड५पल इन सब औषधियोंके बराबर गुड मिलावे अथवा चर्णकोही गरम जलके साथ पीवे तो संपूर्ण वातरोगोंका नाश करता है ॥ १-३ ॥
हिंगुभागौ भवेदेको वचा च द्विगुणा भवेत् । यो भागा विडंगानां सैन्धवं च चतुर्गुणम् ॥ १ ॥ अजाजी पंचभागा च षड्भागं नागरं तथा । मरिचं सप्तभागं च पिप्पल्यष्टगुणा भवेत् ॥ २ ॥ ...
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