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(१२४) योगचिन्तामणिः। [गुटिकाधिकार:वर्ग ( महामेदा १ मेदा २, जीवक ३, ऋषभ ४, सिद्ध ५, ऋद्ध ६, कंकोली ७, क्षीरकाकोली ८, ) और ये न मिले तो वरी, विदारी, असगंध लेवे, ये सब औषधि चार चार टंक लेवे और आंवला १६ टंक, मेढासिंगी १६ टंक, सोंठ, मिरच, पीपल, दो दो पल, विदारीकंद १६ टंक, तालीसपत्र ६४ टंक, घृत, तेल ३२ टंक, शहद १६ पल, मिश्री २५६ टंक, वंशलोचन, तेजपात, नागकेशर, बेलगिरी, तज, इलायची संयुक्त एक टंकके प्रमाण गोलियां बनावे प्रातःकाल सदा विधिसे सेवन करे, भोजन पहिले लेवे, मूंगका पानी, मांसरस, ठंढा पानी अथवा गरम पानी, शहद मदिरासे इसके ऊपर गरिष्ठ भोजन पहिले लेवे और गौके दूधके साथ लेवे तो रूप बढे और सदा आनंदकारी है
और सूजन, गांठ, कंपवायु, पांडुरोग, वमन, कृमि, इलीपद, प्लीहा, अर्श, प्रमेह, पथरी, शर्करा प्रमेह, हृदयरोग, अर्बुद, वृद्धि, यकृत, योनिदोष, वायुरोग, ऊरुस्तंभ, भगंदर, खांसी, श्वास, ज्वर, स्वरभंग, क्षयी, रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ्, तूनी, प्रतूनी, प्यास, वातरक्त, पेट बढनेके रोग, कोट, कृमि, पानात्ययरोग, और समस्त देह के रोग, उन्माद, अतिशूल, अतिदुर्बलता, आलस्य. हलीमक, सर्व मूत्रकृच्छ्र बुढापेसे जो बाल सफेद, होजायँ इन रोगोंको दूर करे मस्त हाथीके समान बल होवे । बलयुक्त मस्तशरीर होजाय और १०० स्त्रियोंसे भोग करनेका सामर्थ्य होवे, लोकमें प्यारा होवे, अज्ञानको दूर करे और महापंडित पुरुष सदा ज्ञानवान् स्मृति भूले नहीं । जो मनुष्य इस औषधिका सेवन कग वह महादेवके समान योगीन्द्र होजावेंगे। यह शिवनाम गोली महादेवजीने कही है ॥ १-८॥
प्यारा हो १०० स्त्रियोंसे भोगबल होवे । बलयुक्त
ज्वरनी गुटी। रसं विषं टंकणगंधकं च सत्र्यूषणं भृङ्गरसेन
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