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तृतीयः] भाषाटीकासहितः। (१२५)
भाव्यम् । गुटी प्रदेया समशर्करांशैः सद्योज्वरं नाशयति क्षणेन ॥१॥ पारा, मीठा तेलिया, सुहागा, गंधक, सोंठ, मिरच, पीपल इनकी सममात्रा ले, चूर्ण कर भांगके रसमें गोली बनावे और मिश्रीके साथ खावे तो ज्वर दूर होवे ॥ १ ॥
विरेचननाम गुटिका। अष्टौ विषतुषदंतिबीजकलिकामागत्रयं नागराद् द्वौगन्धान्मरिचानिटंकणरसा एकैकभागाःक्रमात् । गुंजामानवटी विरेचनकरी देया सुशीतांबुना गुल्मप्लीहमहोदरार्तिशमनी नाराचनामा रसः ॥ १ ॥
जमालगोटेका छिलका दूर कर दूधमें पकावे फिर जीभ, रहित कर ८ टंक, सोंठ ३ टंक, शुद्ध गंधक २ टंक, मिरच, सुहागा फूला एक टंक, पारा १ टंक क्रमसे लेकर चिरमिटीके प्रमाण गोली बनाके
और ठंढे पानीके साथ लेवे तो प्लीहा और सब उदररोगोंको शांति करे । यह नाराच नामक रस है ॥ १ ॥
विश्वौषधं टंकणगन्धकं च सपारदं चेति समांशयुक्तम् । नृपालचूर्ण त्रिगुणं च दद्याद्गुडेन बद्धा गुटिका प्रसिद्धा ॥२॥ विरेचनी मूत्रविकारना. शिनी लध्वी हिता दीपनपाचनी च । संशोधनी शीतजलेन सत्यं संस्तम्भनी चोष्णजलेन सत्यम्॥३॥ सोंठ, सुहागा फूला, पारा, शुद्ध गंधक यह सममात्रा, जमालगोटा तिगुना इनकी गुडके साथ गुटिका बनावे. यह विरेचनकारी, मुत्रविकारको दूर करे, लघुकारी, हितकारी, अग्निदीपन, पाचन,
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