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प्रथमः] भाषाटीकासहितः। (५३) कथितदुग्धेन क्षिप्त्वा चूर्ण पवेद्भिषक् । दर्वीप्रलेपेसंजाते चतुर्जातं विमुञ्चयेत् ॥ ६॥ यजातं तण्डुलाकारं तावनिष्पाकमाचरेत्। पयोयुक्तं घृतं दृष्ट्वा तावदुत्तारयेत्ततः ॥७॥ प्रथम १० पल असगन्ध लेकर उसका चूर्ण करे और असगन्धसे आधी सोंठका चूर्ण करे और सोंठसे आधी पीपलोंका चूर्ग ले और एक पल काली मिरचका चूर्ण लेवे तज, छोटी इलायची, पत्रज, लौंग ये औषधि एक एक पल लेवे,भैंसका दूध पांचसेर, दूधसे आधा सहद
और शहदसे आधा गौका घृत, १० पल मिश्री, पीछे दूध मिश्री घृत शहद चारोंको मिलाकर मिट्टीके बरतनमें डाल मन्द मन्द अग्निसे पाचन करे और जबतक उफान न आवे तबतक अग्नि देवे और जव उफान आजावे तब पूर्वोक्त असगन्ध सोंठ आदिके चूर्गको थोडे दूधमें घोलकर पूर्वोक्त दूधमें मिलादेवे. उसको फिर पचावे । जब दूध करछीसे लगने लगे तब चातुर्जात (इलायची आदि ) को डाले, जब चावल समान भिन्न भिन्न होजाय तबतक पक्व करे, जब घृत और दूध दोनों मिल जायँ तब उतारकर इन औषधियों को और डाले ॥ १-७॥
ग्रन्थिकं जीरकं छिनां लवङ्गं तगरं तथा। जातीफलमुशार च वालकमलयोद्भवम् ॥८॥ श्राफलाम्भोरुहं धान्यं धातकी वंशरोचनाम् । धात्रीखदिरसारं च घनसारं तथैव च ॥ ९॥ पुननवाऽजगन्धे च हुताशनशतावरी । मात्रा गद्याणका चैव द्रव्याणामेकविंशतिः ॥ १० ॥ सूक्ष्मचूर्ण पुरा कृत्वा योगे ह्यस्मिन्निनिक्षिपेत्।
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