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प्रथमः ]
भाषाटीकासहितः ।
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चित्रक, ओंगा, गंमेरन, जवासा इन सब औषधियोंको दो दो पल लेवे. बडी हरड़ १००, पानी ३६० पल अर्थात् २७ सेर ९ पैसे १ टंक लेवे पीछे उन हरडोंको उस पानीमें औटावे जब जलका चतुर्थांश रहे तब उतार लेवे पीछे १० सेर गुड २० पल पानीमें भयवे ४ पल तेल ४ प घृत ४ पल पीपलका चूर्ण पीछे पूर्वोक्त
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में हरड डाले और तैलादिक मिलावे, जब शीतल होजाय तब ४ पल शहद डाल. इलायची, नागकेशर, पत्रज और तज ये चारों औषधि एक एक पल डाले. यह उत्तम रसायन है. इनमेंसे दो हरड कल्कसमेत नित्य प्रातः काल खाय तो राजयक्ष्मा, संग्रहणी, सूजन, मन्दानि स्वरभेद, डरोग, श्वास, मस्तकरोग, हृदयरोग, हिचकी, विषमज्वर इनको नाश करे. बुद्धि बल उत्साह इनको बढावे, चलने की शक्तिको देवे, इस श्रेष्ठ हरडपाकको अगस्त्यऋषिने निर्माण किया है ॥ १-५ ॥
मधुपक हरीतकी । सुपकपथ्यापलपञ्चकं च मूत्रे गवां प्रस्थमिते विपाच्यम् । प्रस्थे पुनः काञ्जिकदुग्धतके पक्त्वा ततो निष्कुलिका विधेया ॥ १ ॥ व्योषं यवानी कुटजस्य बीजं मुस्ताजलं दाडिममम्लवेतसम् । सधातकीपुष्पमजाजियुग्मं कणा जटा मोचरसं सबिल्वम् ॥ २ ॥ सौवर्चलं सैन्धवमइमवल्कं जम्ब्वाम्रमज्जाऽतिविषा च पाठा। लवं - गजातीफलतुर्यजातान्येतानि तुल्यानि विचूर्णि -
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