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(८८) योगचिन्तामाणिः। [चूर्णाधिकार:सुदर्शनचक्र दैत्योंका नाश करता है तैसेही यह सुदर्शनचूर्ण सब ज्वरोंको नाश करता है और अनेक देशोंके जलविकारको नाश करता है ॥ १-११॥
षोडशांग चूण। किरातं तितकं तिक्ता गुडूची चाभया घना। धन्वयासकवायंती क्षुद्रा शृङ्गी महौषधम् ॥ १॥ पर्पटं च प्रियंडं च पटोलं मागधी सटी। षोडशांगमिति प्रोक्त ज्वरशूलविनाशनम् ॥ २॥ चिरायता, नींबकी छाल, कुटकी, गिलोय, हरड, मोथा, जवासा, त्रायमाण, कटेरी, काकडासिंगी, सोंठ, पित्तपापडा, फूलप्रियंमु, पटोलपत्र, पीपल, कचर इनका चूर्ण षोडशांगनामसे विख्यात है यह ज्वर शूलका नाशक है १ ॥ २ ॥
अरिष्टादिचूर्ण। निम्बच्छदो दशपलंत्र्यूषणं च पलत्रयम् । त्रिपलंत्रिफला चैव त्रिफलं लवणत्रयम् ॥१॥ द्वौ क्षारौ द्विपलंचैव यवानी पलपंचकम् । सर्वमेकीकृतं चूर्ण प्रत्यूषे भक्षयेन्नरः ॥२॥ ऐकाहिकं व्याहिकं च त्र्याहिकं च तथाज्वरम् । चातुर्थिकं महाघोरं नाशयेत्संततज्वरम् ॥३॥ नींबकी छाल १० पल, त्रिकुटा ३ पल, त्रिफला ३ पल, सेंधानोन, विडनोन, संचरनोन तीनों एक एक पल, सज्जीखार, जवाखार दो दो पल, अजमायनरपल सबको एकत्र चूर्ण कर खाय तो इकतरा द्वयाहिक तिजारी, चौथिया और सन्ततज्वर ये सब नष्ट होवें ॥ १-३॥
Aho! Shrutgyanam