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द्वितीयः ]
भाषाटीकासहितः ।
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मिरच, गजपीपल, हरड, पंचमूल, ( पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, ) बेरकी मिंगी, दांतण, इन्द्रायणकी जड, देवदारु य सब औषधि कूट पीस कपडछानकर बिजोरेके रसकी और अदरख के इसकी अनेक भावना देकर रख छोडे । इसमेंसे एक महीना पर्यंत प्रातःकाल नित्य खाय अथवा भोजनके समय खाय और पथ्यसे रहे इसको गरम वा शीतल जल के साथ वा पुराने मद्यके साथ या छाछ
बेरके पानी सेवा दहीके जलसे, घृत वा गरम दूधके साथ पीवे अथवा चनाखार आदिके साथ सेवन करे वा अनारके रसके साथ सेवन करे तो इतने रोगोंका नाश करे- हृदय, गुदा, कमर, यकृत् लीहा, गोला इनके आश्रित व्याधिं, शूल, व्रणरोग, बवासीर, गोला, अफरा, हृदयरोग, उदररोग, और सूखी रद्दको नाश करे ||
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क्षारामृत ।
क्षारं किंशुकमुष्ककार्जुनधवापामार्गरम्भातिलाजीवन्तीकनकाह्वया सुरजनी कूष्माण्डवल्ली तथा । वासासूरणकत्रिवृद्दहनकैः प्रज्वाल्य भस्मीकृतं तोयेन प्रतिशोध्य निःसृतमयःपानं विधेयं सकृत् ॥ १ ॥ शूलानाहविबन्धगुल्मकफजान्रोगाअयेत्कामलां वायुं विद्रधिशूलपाण्डुग्रहणीशोफारसं पीनसम् । मन्दाग्नि जठरस्य पीनसगुरुप्लीहातिमेदादिकान् पाषाणा उदरे भवन्ति बहुधा भस्मीभवन्ति क्षणात् ॥ २ ॥
ढाका खार, मुष्क वृक्ष ( वनपलाश ) नाम से प्रसिद्ध है, अर्जुन ( कोह ) इति भाषा ), ओंगा, केला, तिल, जीवन्ती ( डोडी )
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