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द्वितीयः ]
भाषाटीकासहितः ।
( १०३)
हन्ति कण्डूरुजं च ॥ २ ॥ फलान्यग्लानि शीताम्बु रूक्षान्नं दन्तधावनम् । तथाऽतिकठिनान्भक्ष्यान्दन्तरोगी विवर्जयेत् ॥ ३ ॥
कुठ, दारूहल्दी, लोध, मोथा, मँजीठ, पाढ, कुटकी, मूर्वा ( एक लता होती है ), हलदी इन सब औषधियोंका चूर्ण कर दातों में मले तो रुधिर गिरना, खुजली, दरद आदिको दूर करे और खट्टा फल तथा खटाई न खावे, ठंढा पानी न पीवे, रूखा अन्न दन्तधावन, अतिकठिन भोजन इन सबको दंतरोगी छोडदेवे ॥ २-३ ॥ दन्तमसी ।
कासीसं त्रिफला माजूफलं जुङ्गी हरीतकी । कर्पूरं खदिरं ताप्यं लोहचूर्णे च विद्रुमम् ॥ १ ॥ दाडिमं त्वक्च मंजिष्ठा लोध्रं तुत्थं सुराष्ट्रजा । मस्तंगी विदलं पूगं सर्व सूक्ष्मविचूर्णितम् । दन्तशूलहरं चाम्लं दन्तकृष्णीकरं तथा ॥ २ ॥
कसीस, त्रिफला, माजूफल, जंगीहरड, कपूर, खैरसार, सोना मक्खी, लोहचूर्ण, मूंगा, अनारका छिलका, मँजीठ, लोध, नीलाथोथा, फिटकरी, मस्तंगी, विदल, सुपारी, इन सबको बराबर लेकर पीस ले। यह दाँतों का दरद दूर करे तथा दाँतों को स्याह करे, यह खट्टा है ॥ १ ॥ २ ॥
कायाकल्पमें भृंगराजचूर्ण |
समूलं भृंगराज चं छायाशुष्कं तु कारयेत् । तत्समं त्रिफला चूर्ण सर्वतुल्या सिता भवेत् ॥ १ ॥ पलैकं भक्षयेच्चैतदपमृत्युज्वरापहम् ॥ २ ॥
भांगरा पंचांगको छायामें सुखावे उसकी बराबर त्रिफला और
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