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(५०) योगचिन्तामणिः। [पाकाधिकारः
धात्रीत्वगेलापत्रकं तथा ॥ ४ शृंगाटकं कशेरं च ग्रंथिकं चैव चित्रकम् । प्रियालुतालमूली च लवङ्गं मुंदमेव च ॥५॥ पलार्दैन विगृह्णीयाच्चूर्ण तत्र विनिक्षिपेत् । दा विघट्टयेत्पश्चाल्लेहीभूतं यदाभवेत् । घृतेनापि विलियाच ज्ञात्वा तत्र बलाबलम् ॥ ६॥ २-पके पेठेके टुकडे कर उसका डिलका और बीज दूर कर काँजीके चूने के पानीले धोकर पीछे शुद्ध पानीसे धोके, तदनन्तर उन टुकडोंको गोंद कर पांच सेर दूधमें औटावे जब खोवा होजाय तब आठ पल नवीन वृतम उस खोवाको भूने जब भूनकर शहदके वर्णसदृश हाजाय तब १०० पल मिश्री की चासनी कर उसमें उस खोवाको डाले और ये औषधी डाले-पीपर, अदरख, मिरच, टंक ३२, सफेद जीरा, काला जीरा, आँवले, तज, छोटी इलायची, पत्रज, सिंघाडे, कसेरू, पीलापूल, चित्रक ८ टेक. नियंगुफूल टंक ८, मूसली टंक ८, लौंग टंक ८, खैरका गोंद टंक ८, लेवे और जिनकी तोल न कही उनको सोलह से लह टंक लेवे सबको कूट पीसकर उसमें डाल देवे और कड छोले चला देवे, जब अलेह तैयार हो जावे तब बलाबल देखकर इसकी मात्रा देखें और इसके ऊपर घी पीवे ॥ १-६॥
रक्तपित्तं ज्वरं कासं कामलांतमकं भ्रमम् ॥७॥ छदितृष्णाज्यरंश्वासपाण्डुरोगक्षतक्षयम् । अपस्मारं शिरोति च योनिशूलं च दारुणम् ॥ ८॥ योनिरक्तप्रवाहं च ज्वरं मन्दाग्नितां हरेत्। वृद्धोयुवायते
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