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योगचिन्तामणिः ।
पाकाधिकारः
अग्निको प्रवल करे, कान्ति करे, तेजको तथा कामदेवको बढावे, यह योग अश्विनीकुमारने वलीपलितनाशनार्थ कहा है, क्षीणवीर्यवाले पुरुको और क्षीण वीर्यवाली स्त्रियों को देखकर यह तालमूली (मशली ) भवलेहको पृथ्वी में निर्माण किया, इसके समान वीर्यको दरानेवाला योग पृथ्वीमें दूसरा नहीं है ॥ ८-१५ ॥
मुसल्याश्च पलान्यष्टौ तुलाक्षीरे विपाचयेत् । सर्पिर्द्विकुडवं देयं सिताकर्षशतं तथा ॥ १ ॥ गृदं पलचतुष्कं च मज्जा त्रीणि पलत्रयम् । जातीफलं लवंगं च कुंकुमं चैव तुंबरम् ॥ २ ॥ मांसीमर्कटबीजानि चातुर्जातकटुत्रयम् । जातीपत्रकरंभा च प्रत्येकं पिचुमात्रकम् । द्विकर्ष मोदकं कुर्यादेकैकं भक्षयेन्नरः || ३ ||
मुशली ८ पल (१२८ टंक ), दूध दश सेरमें औवाने, पछि इन उत्तम घृत २० टंक भर डालकर भूने, पीछे सफेद चीनी ४०० टंक मौर बबूल का गोंद ४६ टंक और गरी बादाम, चिरौंजी ये तीनों १६ तोले, जायफल, लौंग, केशर, चध्य, तुम्बरू, छड, कौंच के बीज, दालचिनी, छोटी इलायची, नागकेशर पत्रज, सोंठ, मिरच, पीपल, जावित्री, केलीका कन्द ये प्रत्येक औषधि चार चार टंक लेनी | पूर्वोक्त प्रकारसे पाक बनाकर इसमें ८ टंकके अनुमान लड्डू बनावें नित्य एक लड्डू खाय तो इतने रोग जायँ ॥ १ ॥ ३ ॥
धातुक्षीणं मदक्षीणं क्षीणवीर्य तथाऽनलम् ॥ ४ ॥ कासश्वासारुचि पाण्डुं दौर्बल्यं विषमज्वरम् । षण्ढो रमयते नारीशतं वा नात्र संशयः ॥ ५ ॥
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