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प्रथमः] भाषाटीकासहितः। (१५)
१-गोखरू २५६ टंकका चूर्ण कर १०२४ टंक दूधमें औटावे, जावित्री, लौंग, लोध, मिरच, भीमसेनी कपूर, नागरमोथा, समुद्रशोष, धतूरेके बीज, हलदी, आंवले, पीपल, केशर, नागकेशर, इलायची, पत्रज, अफीम, कौंचके बीज. अजमायन इन सब औषधियोंको एक एक टंक लेकर इन सब औषधियों के बराबर मिश्री लेवे, और सब
औषधियोंसे आधी भांग लेवे, गौके ५१२ टंक घृतमें सब औषध युक्त खोआको भूनकर खांडकी चासनी कर पूर्वोक्त रीतिसे पाक बनावे । इसको प्रातःकाल सेवन करे तो बवासीर, प्रमेह, क्षीणता ये संपूर्ण रोग नष्ट होवें, स्त्री के संग करनेसे स्त्री द्रवे, क्षयका नाश करे, कामियोंको वाजीकरणता करता है, यह गोखरूपाक मानिनी स्त्रियों के मानरूप मृगको जीतनेमें सिंहरूप है, यह वातके जीतनेवाली औषधि
गोकण्टकं सदलमूलफलं गृहीत्वा सङ्कट्टितं पलशतं क्वथितं च तोये । पादावशेषसलिले च पलानि दत्वा पञ्चाशतं परिपचेदथ शर्करायाः॥१॥ तस्मिन्धनत्वमुपगच्छति चूर्णितानि दद्यात्पलद्वय मितानि सुभेपजानि । शुण्ठीकणामरिचनागदलत्वगेलासजातिकोषककुभत्रपुषीफलानि ॥२॥ वंशीपलाष्टकमिहप्रणिधाय नित्यं लेह्यं सुसिद्धममृतं पलसंमितं तत् । हन्त्याशुमूत्रपरिदाहविबन्धशुक्रकृच्छ्राश्मरीरुधिरमेहमधुप्रमेहान् ॥३॥ २--पत्ता और जडसहित गोखरू लेकर सौ पल जलमें औटावे, जब चौथाई जल बाकी रहे तब पचास पल मिश्री डाल कर पचावे, जब पककर गादी होजाय सब इन औषधियोंका चूर्ण डाले -सोंठ, पीपल,
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