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प्रथमः ]
मापाटीकासहितः ।
सदा भेषज संसेवी भवेन्मारुतविक्रमः । खण्डाम्रकमिति प्रोक्तं भार्गवाय स्वयंभुवा ॥ १३ ॥ वृष्यं च मेध्यमायुष्यं सर्वपापप्रणाशनम् । ग्रहयक्षपिशाचन्नमपस्मारन्नमुत्तमम् ॥ १४ ॥ बल्यं रसायनं श्रेष्ठं श्रीखण्डाम्रकसंज्ञकम् ॥ १५ ॥
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इस आम्रपाकको एक पलके प्रमाण प्रातःकाल भोजनके पूर्व खानेसे अतिप्रचल अरुचि, खांसी, श्वास, क्षयी, पीनस, सरेकमा, तापतिल्ली यकृनके रोग, अम्लपित्त, रुधिरपित्त, तालुनाश, स्वरभंग खोटे नामवाले (अर्श) रोग, पांडुरोग, कामला, हद्रोग, शिरका दर्द आनाह, खुजली, शीतपित्त इतने रोगों का नाश करे, इसके खानेसे वृद्ध मनुष्य तरुणता होजाय, धीर सर्वगुणयुत सौ वर्षकी आयुवाला निरोगी होय जिसके मरा हुआ बालक होय और जिसका गर्भ गिरजाता होय, ऐसी स्त्रीभी नारायणपरायण पुत्रको प्रकट करे, jघ्याकेमी गर्भमाति होय, वृद्धा स्त्री तरुणताको प्राप्त होवे, घोडा और मस्त हाथीकासा पराक्रम होय. कामदेवके वेगसे व्याप्त मनुष्य हजार स्त्रियोंसे गमन करे, इस पाकका नित्य सेवन करे तो पुरुष पवन के समान पराक्रमी होय, यह आपक भार्गव ऋषि ब्रह्मदेवने कहा है, यह वृष्य है, पवित्र, आयुश्यकर्ता, सर्वपापनाशक और ग्रह भूत पिशाच, मृगीरोग इन सबका नाश करे, इस बलकर्ता रसायनको श्रीखंडा कहते हैं ॥ ६-१५ ॥
बृहन्मुसलीक |
मुसलीकन्दचूर्ण तु क्षीरेऽष्टगुणिते पचेत । प्रस्थं तत्र दातव्यं चूर्णमेषां पृथक्पलम् ॥ १ ॥ म्योषं त्रिजातहषा शताह्वाशतमूलिका ।
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