________________
(१६)
योगचिंतामणि:
[ पाकांधिकारः
अरुन्धती भवज्जिह्वा ध्रुवो नासाग्रमेव च । विष्णुस्तु द्वयोर्मध्ये द्वयं मातृमण्डलम् || ३ || नासाग्रं भ्रूयुगं जिह्वां मुखं चैव न पश्यति । कर्णघोषं न जानाति स गच्छेद्यममंदिरम् ॥ ४॥ अरुंधती नाम जीका है, नासिकाके अग्रभागका नाम ध्रुव है दोनों भ्रुकुटियों के बीचका नाम विष्णु है और दोनों भौहेका नाम मातृमंडल है अर्थात् गतायु मनुष्य इनको नहीं देखते, नाकका अग्रभाग- दोनों भौंहे, जीभ, मुख इनको जो न देखे तथा अपने कानोंका शब्द न सुने सो यमराजके घरको जाय || ३ | ४ ॥
अकस्माद्धि भवेत्स्थूलो ह्यकस्माच्च कृशो भवेत् । अकस्मादन्यथाभावे षण्मासैश्च विनश्यति ॥ ५ ॥ रसनायाः कृष्णभावो मुखं कुंकुमसन्निभम् । जिल्हा स्पर्श न जानाति दुर्लभं तस्य जीवतम् ॥ ६॥ जो मनुष्य अकस्मात् ( विना कारणही ) मोटा होजाय और अकस्मात् पतला होजाय तथा अकस्मात् उलटे भावको प्राप्त होजाय वह रोगी छः महीने में मरे, जिसकी जीभ काली होजाय, मुख केशर के समान पीला होजाय और जीभ स्पर्शको जाने नहीं उस रोगी का जीना दुर्लभ है ॥ ५--६ ॥
देशज्ञान |
देशोऽल्पवारिदुनगो जाङ्गलः स्वल्परोगदः । अनूपो विपरीतोऽस्मात्समः साधारणः स्मृतः ॥ १ ॥
जिस देशमें अल्प जल, अल्प वृक्ष, अल्प पर्वत होंय उसको जांगल देश कहते हैं, जैसे मारवाडदेश है। ऐसे देशोंमें कम रोग होते हैं और जिस देशमें बहुत जल, बहुत वृक्ष, बहुत पर्वत होंय उसको अनूप देश
Aho! Shrutgyanam