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(२०) योगचिंतामणिः- [पाकाधिकार:पलिकानां द्विसहस्रं भार एकः प्रकीर्तितः। तुला पलशतं ज्ञेया सर्वत्रैवैष निश्चयः ॥ १७ ॥ माषटंकाक्षबिल्वानि कुडवः प्रस्थमाढकम् । राशिर्गोणीखारिकेति यथोत्तरचतुर्गुणाः ॥ १८॥ चार द्रोणीकी एक खारी उस खारीके चार हजार छियानवें पल होते हैं, दो हजार पलका एक भार होता है तथा सौ पलकी एक तुला होती है, ऐसे सर्वत्र निश्चय जानना ।। १६-१८ ॥
स्थिति स्त्येव मात्रायाः कालमग्निं वयो बलम् । प्रकृतिं दोपदेशौ च दृष्ट्वामात्रांप्रकल्पयेत्॥१९॥ यतो मन्दानयो ह्रस्वा हीनसत्त्वा नराः कलौ । अतस्तु मात्रा तयोग्याप्रोच्यते शास्त्रसंमता ॥२०॥ यो द्वादशभिगौरसर्षपैः प्रोच्यते बुधैः । यवदयेन गुना स्यात्रिगुञ्जो बल्लमुच्यते॥ २१ ॥ मात्राकी स्थिति नहीं है अर्थात् जो प्रयोगमें मात्रा लिखी है उतनीही देनी चाहिये यह नियम नहीं हैं । वेद्य काल, अग्नि, अवस्था, वल, प्रकृति, दोष और देश इनको देखकर अपनी बुद्धिसे मात्राकी कल्पना करे, क्योंकि इस कलियुगमें मन्दाग्नि, छोटे और हीनपराक्रम मनुष्य हैं इसी कारण उनके निमित्त शास्त्रसंमत मात्रा कहता हूं-बारह सफेद सरसोंका एक यव होता है दो बवकी एक गुंजा (रत्ती) होती है । तीन गुंजाका एक वल्ल होता है । १९-०२१ ॥ माषो गुनाभिरष्टाभिस्सप्तभिर्वा भवत्वचित् । स्याच्चतुषिकैः शाणः स निष्कष्टक एव च ॥२२॥
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