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प्रथमः] भाषाटीकासहितः। (१९)
अष्टमानं च संज्ञेयं कुडवाभ्यां च मानिका॥ शरावोऽष्टपलं तवज्ज्ञेयमत्र विचक्षणैः ॥ १२ ॥ दो कर्षका एक अर्धपल होता है, जिसको शुक्ति तथा अष्टमिका भी कहते हैं, दो अर्धपलका एक पल होता है, जिसको मुष्टि, आम्र, चतुर्थिका, प्रकुंच, षोडशी और बिल्व भी कहते हैं. दो पलकी एक प्रसूति होती है, जिसको कुडव, अर्धशराव और अष्टमान कहते हैं. दो कुडवकी एक मानिका, जिसको शराव और अष्टपल भी कहते हैं ॥ १०-१२ ॥
शरावाम्यां भवेत्प्रस्थश्चतुःप्रस्थस्तथाऽऽढकम् । भाजनं कंसपात्रं च चतुःषष्टिपलं च तत् ॥ १३ ॥ चतुर्भिराढोणः कलशो नल्वणोन्मनौ । उन्मानश्च घटो राशिोणपर्यायसंज्ञकाः ॥ १४ ॥ द्रोणाभ्यां शूर्पकुम्भौ च चतुःषष्टिशरावकः । शूपाभ्यां च भवेद्रोणीवाहो गोणी च सास्मृता॥१५॥ दो शरावका एक प्रस्थ, चार प्रस्थका एक आढक, जिसको भाजन और कंसपात्र भी कहते हैं. इस आढकके चौसठ पल होते हैं. चार आढकका एक द्रोण जिसको प्रसृत भी कहते हैं दो प्रमृतिकी एक अंजली, जिसको कलश, नल्वण, उन्मन, उन्मान, घट और राशि भी कहते हैं. दो द्रोणका एक शूर्प और कुम्भ होता है तथा उस शूर्पके चौंसठ शराव होते हैं दो शूर्पकी एक द्रोणी जिसको वाह गोणी भी कहते हैं ॥ १३-१५॥ द्रोणीचतुष्टयं खारी कथिता सूक्ष्मबुद्धिभिः। चतुःसहस्रपलिका षण्णवत्यधिका च सा॥ १६॥
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