________________
प्रथमः ]
भाषाटीकासहितः ।
( २५ )
प्रथम त्वचा अवभासिनी है सो सिध्मकुष्ठकी भूमि है, दूसरी त्वचा लोहिता है सो तिलकालककी जन्मभूमि है, तीसरी त्वचा श्वेता है जो चर्मदल कुष्ठकी जगह है, चतुर्थ ताम्रा सो किलासकुककी ठौर है, पांचवी वेदनी है सो सम्पूर्ण कुष्ठोंकी जगह हैं, छठवीका भी नाम लोहिता है सो गांठ, गण्डमाला, अपची आदि रोगोंकी जगह है, सातवीं त्वचा का नाम स्थूल है सो विद्रधि आदि रोगोंकी जन्मभूमि हैं, ये सात त्वचा कहीं हैं, इन सातोंका मुटान दो यवकी बराबर है || १७ || २० || इति शारीरक ||
अथ पाकविधि | चिकित्सायां द्वयं सारं पाकविद्या रसायनम् । पाकावलेहभेदः स्यात्स मृदुः सघनः परः ॥ १ ॥ चिकित्सा में दो वस्तु सार हैं- एक पाकविद्या, दूसरी रसायनविद्या । इनमें नरम और कठिनके भेदसे पाक दो प्रकारका है अर्थात जिसकी चासनी कुछ पतली होय उसको अवलेह कहते हैं और जिसकी चासनी कड़ी करके जमाया जावे उसको पाक कहते हैं ॥ १ ॥ तत्रादौ शिक्षा ।
काष्टौषध्यः पृथक्पेष्याः सुगन्धादिपृथग्विधाः । सम्पेष्य वस्त्रसंपूतमुभयं स्थापयेद्भिषक् ॥ २ ॥ द्राक्षाश्रीफलबादामप्रभृतिः स्याद्यदाऽत्र तु । तन्न पेष्यं भिषग्वर्यैः किन्तु भूरिविखण्डयेत् ॥ ३ ॥ खमतण्डुलचारस्य बीजानि तु यथा स्थितिः । पाकद्राक्षादिचारस्य मज्जा तन्मात्रयाऽधिकम् ॥ ४॥ पाकनुसारतो ग्राह्यं भक्षणे तत्सुखावहम् । पाककर्ता वैद्यको उचित है कि काष्टादि औषधियोंको न्यारी पीसे और सुगन्धादि जैसे लौंग इलायची जावित्री आदिको न्यारी पीसे ।
Aho ! Shrutgyanam