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योगचिंतामणिः ।
[पाकाधिकारः
मुखकी चिकनाई यह मज्जा धातुका मल है. मुखक मुहांसे शुक्रका
मल है ॥ १२ ॥ १३ ॥
स्तन्यं रजश्च नारीणां काले भवति गच्छति । शुद्ध मांसभवः स्नेहो वसा सा परिकीर्तिता ॥ १४ ॥ स्वेदो दन्तास्तथा केशास्तथैवौजश्च सप्तमम् | ओजः सर्वशरीरस्थंस्निग्धं शीतं स्थिरं सितम् ॥ १५॥ सोमात्मकं शरीरस्थं बलपुष्टिकरं मतम् । इति धातुमला ज्ञेया एते सप्तोपधातवः ॥ १६ ॥ रसकी उपधातुसे स्त्रियोंको दूध होता है, रुधिरकी उपधातु रज, यह स्त्रियोंके समय पाकर होता है, नष्ट भी होजाता है । चरवी मांसकी उपधातु हैं जिसको वसा कहते हैं, स्वेद मेदाकी उपधातु है, दांत अस्थिकी उपधातु है, केश मजाबाकी उपधातु है, और रज शुक्रधातुकी उपधातु है, ओज सर्व देहमें रहता है, चिकना शीतल स्थिर और सफेद है । यह ओज सोमात्मक शरीरमें स्थित होकर देहमें बल और पुष्टता करता है । ये सात धातुओं से सात धातु पैदा होती हैं ॥ १५ ॥ १६ ॥
ज्ञेयाऽवभासिनी पूर्व सिध्मस्थानं च सा मता । द्वितीया लोहिता ज्ञेया तिलकालकजन्मभूः ॥ १७॥ श्वेता तृतीया संख्याता स्थानं चर्मदलस्य च । ताम्रा चतुर्थी विज्ञेया किलासश्चात्र भूमिका ॥ १८ ॥ पञ्चमी वेदनी ख्याता सर्वकुष्टोद्भवस्ततः । विख्याता लोहिता षष्ठी ग्रंथिगण्डापचीस्थितिः ॥ १९ ॥ स्थूला वक्सप्तमी ख्याता विद्रध्यादेः स्थितिस्तु सा । इति सप्त त्वचः प्रोक्ताः स्थूला व्रीहिद्विमात्रया ॥ २० ॥
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