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कार्य निरन्तर नहीं चलता । इन्हें कोई न कोई बीमारी भी देखने में आती है।
शुक्र मुद्रिका हृदय रेखा उंगलियों के पास होने पर यदि मंगल रेखा हो या शुक्र से कोई रेखा आकर भाग्य रेखा पर मिलती हो या भाग्य रेखा में निर्दोष प्रभावित रेखा हो, तो व्यक्ति को पुरूष होने पर स्त्री और स्त्री होने पर पुरूष से लाभ होता है। यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्तियों का विवाह दूसरों के द्वारा ही किया जाता है। ऐसे पुरूष स्त्री की कमाई खाने वाले होते हैं। हाथ पतला, काला या दोषपूर्ण होने पर अपनी स्त्री से भी अनैतिक कार्य कराने वाले होते हैं।
चतुष्कोण
चार रेखाओं से मिलकर बनी आकृति को चतुष्कोण कहते हैं। स्वतन्त्र होने पर ही यह उत्तम माना जाता है। चतुष्कोण सदैव ही रक्षा करते हैं। अतः जिस रेखा या ग्रह पर इसकी स्थिति होती है, उससे सम्बन्धी दोष से रक्षा करता है। चतुष्कोण में दोष होने पर संकटों से रक्षा करता है। परन्तु दोष न होने पर यह गुणों में वृद्धि व लाभ का लक्षण है।
किसी भी रेखा में दोष होने पर वह दोष चतुष्कोण से ढका हुआ हो तो उसका फल केवल आभास मात्र ही होता है, अर्थात् समस्याएं तो आती हैं, परन्तु हानि नहीं होती। निर्दोष रेखा में चतुष्कोण उस आयु में धन-सम्पत्ति या प्रेम, जैसी भी दशा हो, वृद्धि कर देता है। बृहस्पति पर चतुष्कोण बीमारी, सम्मान, गले के रोग, अचानक आने वाले खतरे और जहर आदि मसलों में रक्षा करता है। ऐसे व्यक्ति को ससुराल से लाभ होता है। सूर्य पर यह प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला व कलंक मिटाने और नेत्र ज्योति को निर्दोष रखने वाला होता है। ___ बुध पर चतुष्कोण अपकीर्ति या किसी षडयन्त्र से रक्षा का संकेत है। यह वक्तृत्व या लेखन शक्ति में वृद्धि करता है। चन्द्रमा पर चतुष्कोण जल से रक्षा और धार्मिक रूचि का लक्षण है। चन्द्रमा पर अधिक रेखाएं होने पर व्यक्ति को बेहोशी, जलोदर, हिस्टीरिया, स्वप्नदोष आदि रोग पाये जाते हैं। परन्तु चन्द्रमा पर चतुष्कोण होने पर इन रोगों से रक्षा होती है। मृत्यु के कारण नहीं बनते।
शुक्र पर चतुष्कोण होने पर वीर्य, जिगर, स्वास्थ्य-रक्षा व पारिवारिक सम्बन्धों में मधुरता का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति स्वास्थ्य की परवाह करते हैं और अपने परिवार में सद्भावना से रहते हैं। इनकी स्मरणशक्ति उत्तम होती है।
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