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यह एक उत्तम लक्षण होने पर अचानक भाग्योदय होने का सूचक है। जिस आयु में यह रेखा भाग्य रेखा से निकलती है, कोई न कोई उत्तम कार्य किया जाता है जो कि पूरे जीवन को स्थायी कर जाता है। इस आयु से व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से जीवन यापन भी आरम्भ कर देता है। (चित्र 108 ) ।
भाग्य रेखा से भाग्य रेखा निकलने या भाग्य रेखा के होते हुए दूसरी भाग्य रेखा होने या शनि क्षेत्र या चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यह जरूरी नहीं कि जिस आयु में भाग्य रेखा निकलती है, उसी आयु में लाभ भी हो, इसका फल जीवन में उससे पहले या बाद में या आयु भर मिलता रहता है। किन्तु मस्तिष्क रेखा, सूर्य रेखा या जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा का चमत्कार उसी आयु में प्रकट होता है, जिसमें यह निकलती है।
भाग्य रेखा से निकल कर भाग्य रेखा पहली भाग्य रेखा के साथ चलती हो या भाग्य रेखा के साथ कोई दूसरी भाग्य रेखा बिल्कुल सटी हुई हो तो उस आयु में कोई समानान्तर यौन सम्बन्ध या विवाह होता है। ऐसी भाग्य रेखा शुक्र उन्नत नहीं हो तो उस आयु में कार्य में उन्नति का लक्षण है, परन्तु जीवन व मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो और हृदय रेखा की कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर नहीं मिलनी चाहिए। शुक्र सम होने पर दोहरे आय के साधन होते हैं, परन्तु शुक्र उन्नत होने पर दो स्त्रियां रखने का लक्षण हैं।
भाग्य रेखा का हृदय रेखा से निकलना
अनेक हाथों में भाग्य रेखा, हृदय रेखा से निकल कर शनि पर जाती है । देखा जाता है कि इसके साथ मुख्य भाग्य रेखा भी व्यक्ति के हाथ में होती है। मुख्य भाग्य रेखा में कोई दोष जैसे मस्तिष्क या हृदय रेखा पर रुकना आदि हो तो व्यक्ति 3540 या 50 वर्ष अर्थात् मुख्य भाग्य रेखा की आयु बीतने पर ही उन्नति करते हैं। हृदय रेखा से भाग्य रेखा निकलने पर इसका फल 50 वर्ष की आयु के पश्चात प्राप्त होता है। हाथ में श्रेष्ठ मुख्य भाग्य रेखा होने पर, ऐसी भाग्य रेखाएं भी हो तो व्यक्ति विदेश व्यापार, विदेश यात्रा या नए कार्य के द्वारा लाभान्वित होता है। ऐसी भाग्य रेखाएं हाथ में अधिक भी देखी जाती हैं। ये रेखाएं जितनी पतली और सुडौल होती
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चित्र - 108
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